आंशिक जीत के बाद एमएसपी और आपराधिक मुकदमों को ख़ारिज करवाने के लिए किसान कर रहे लंबे संघर्ष की तैयारी

अपने भोजन के इंतज़ार में बैठे भगवंत सिंह खालसा राष्ट्रीय राजधानी में किसानों के संघर्ष की जानकारी लेने के लिए पंजाबी ट्रिब्यून पढ़ रहे हैं। किसानों का यह संघर्ष तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ़ और उनके उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए चल रहा है। लेकिन खालसा के आसपास उनका भोजन साझा करने के लिए कोई मौजूद नहीं है। वे कृषि कानूनों के खिलाफ़, अम्बाला-राजपुर रोड पर रिलायंस पेट्रोलियम द्वारा चलाए जा रहे पेट्रोल पंप के सामने अकेले धरने पर बैठे हुए हैं। उन्होंने अकेले ही पेट्रोल पंप के स्टाफ को अपना क्रियान्वयन रोकने के लिए मजबूर कर दिया। यह प्रदर्शन स्थल हरियाणा में प्रसिद्ध किसान विरोध स्थल शम्भू बॉर्डर के पास स्थित है, जहां से किसानों ने पिछले साल 26 नवंबर को दिल्ली के लिए मार्च शुरू किया था। शम्भू बॉर्डर पर प्रदर्शन का आयोजन करने वाली समिति हर दिन एक व्यक्ति को भगवंत सिंह खालसा को भोजन देने के लिए भेजती है।
पटियाला में हरपालपुर गांव के रहने वाले खालसा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने पेट्रोल पंप के बाहर धरना देने का फ़ैसला इसलिए लिया, क्योंकि रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियां ही सरकार के फ़ैसले का फायदा पाने वाली थीं। इसलिए मोदी सरकार और बड़े व्यापारियों के गठबंधन को तोड़ना जरूरी थी, ताकि लोगों को लगातार हो रही लूट और प्रताड़ना से बचाया जा सके।
वह कहते हैं, "उन्होंने पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में तभी कमी की, जब वे कई राज्यों में उपचुनाव हारने लगे। शुरू में उन्होंने कीमतें बढ़ाने के लिए तर्क पेश किए थे। इसी तरह उनकी लूट तभी बंद करवाई जा सकती है, जब उनके व्यापारिक हितों पर वार किया जा सके।"
यहां खालसा का इशारा हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा और लोकसभा उपचुनावों की तरफ था, जहां बीजेपी को कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सामने हार का सामना करना पड़ा।
खालसा आगे कहते हैं, "मैंने यहां बैठना इसलिए तय किया क्योंकि किसी भी संघर्ष को जीतने के लिए त्याग की जरूरत होती है और यह संघर्ष कई पीढ़ियों तक जारी रह सकता है। मुगलों ने लोगों पर अत्याचार किए। उन्होंने मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ा। लेकिन उन्हें साझा प्रतिरोध के सामने हार का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में कहा जाता था कि उनका सूर्य कभी अस्त नहीं होता, लेकिन उन्हें भी भारत छोड़ना पड़ा था। भारत की आज़ादी कई पीढ़ियों के त्याग के बाद हासिल हुई थी। मैं इस ऐतिहासिक संघर्ष में अपना किरदार अदा कर रहा हूं।"
एक साल के लंबे संघर्ष के बाद, पंजाब और हरियाणा की सीमा पर बसे इस क्षेत्र के किसान प्रधानमंत्री द्वारा आने वाले शीतकालीन सत्र में तीनों विवादित कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद बेहद खुश हैं। लेकिन इसके बावजूद वे किसानों की दूसरी मांगों को लेकर सतर्क और दृढ़ निश्चयी हैं। इन मांगों में न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ आपराधिक मामलों को खारिज किया जाना, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की लखीमपुर खीरी नरसंहार में कथित भूमिका पर गिरफ़्तारी और उन्हें पद से हटाया जाना।
जब समुदायों के लंबे संघर्ष और उनके खिलाफ़ नफ़रती कार्यक्रमों पर सवाल पूछा गया, तो खालसा ने कहा, "हमने हमारे खिलाफ़ नफरती कवायद देखी। नफ़रत फैलाने वाले पंजाब की समावेशी विरासत को भूल गए। गुरुनानक की जिंदगी में तीन ऐसी घटनाएं हुईं, जब मुस्लिमों ने अहम किरदार अदा किया। नानक की दाई मुस्लिम थीं, जिन्होंने उन्हें पहली बार देखा और उन्हें उनकी विशेषताओं के लिए विशेष बच्चा बताया। भाई मरदाना, जो गुरुनानक के साथ उदासिस में शामिल हुए और उनके ताउम्र साथी बने रहे, वे एक मुस्लिम थे। इसके अलावा हरमिंदर साहब की आधार शिला रखने वाले मियां मीर भी मुस्लिम थे। तो जो लोग उल्टी-सीधी बातें करते हैं, वे हमारा इतिहास नहीं जानते।"
पेट्रोल पंप से दूर, शम्भू बॉर्डर पर पेशे से शिक्षक डिम्पी शर्मा अपना टेंट लगाई हुई् हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके अनुमान के मुताबिक़, हर किसान को एक सत्र में एक एकड़ पर 17,000 रुपये बचते हैं। डिम्पी शर्मा के मुताबिक़, "अब आप इसे देश में 2.6 एकड़ भूमि प्रति किसान से जोड़ लीजिए, तो हमें दो सत्र के लिए एक किसान की सालाना आय 88,400 रुपये मिलती है, जो महीने का 7,366 रुपये बैठती है। इस बढ़ती महंगाई में इतनी कम आय में वह अपना जीवन कैसे चला सकता है? ध्यान रहे कि दो अच्छी फ़सलों की संभावना भी कम है, क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं की संभावना लगातार उनके सिर पर मंडराती रहती है। तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून, जहां फ़सल की लागत का डेढ़ गुना दाम तय किया जाए, उसी से किसान बच सकता है।"
शर्मा के बगल में भजन सिंह बैठे हुए हैं, वह कहते हैं कि पिछला साल उनके लिए बहुत भयावह रहा, क्योंकि प्रवासी मज़दूर अपने घरों को वापस चले गए और रास्ते में पुलिस कार्रवाई के डर से वापस नहीं आए।
वह कहते हैं, "कोई भी कामग़ार लौटने के लिए तैयार नहीं है। कुछ लोगों को पुलिस कार्रवाई का डर है, तो कुछ लोगों को उनके स्वास्थ्य की चिंता है। उन्हें वापस लौटने को मनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी। बुआई की दर 2000 रुपये एकड़ से बढ़कर 4000 रुपये एकड़ हो गई थी। इस सत्र में यह गिरकर 2500 रुपये एकड़ पर आ गई। सरकार मंडियों को खोलने के लिए इच्छुक नहीं थी और हमें ऊपार्जन शुरू करवाने के लिए हर बार संघर्ष करना पड़ा। मौजूदा सत्र में पहले हमें डीएपी के लिए लाइन में लगना पड़ा और अब यूरिया उपलब्ध नहीं है। इन स्थितियों में आप कैसे काम कर सकते हैं?"
भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के कार्यकर्ता तेजवीर सिंह कहते हैं कि किसानों ने अपने काफिलों को हरियाणा-पंजाब सीमा से दिल्ली सीमा तक पहुंचाने के लिए चार रास्ते तय कर लिए हैं।
"यह काफ़िले सिरसा, खरौनी, दाबवाली और शम्भू बॉर्डर से निकलेंगे। पहले तीन काफ़िले 25 नवंबर से अपनी यात्रा शुरू करेंगे, जबकि शम्भू से 26 नवंबर को काफ़िला निकलेगा। यह काफ़िले हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों में जाएंगे और वहां गांवों में किसान उनका स्वागत करेंगे।"
तेजवीर ने कहा कि यह आंशिक जीत पंजाब और उत्तर प्रदेश में आने वाले चुनावों की पृष्ठभूमि में आई है।
वह कहते हैं, "मुझे आशा है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी काम करेगही। इसके बिना इस लंबे संघर्ष का कोई मतलब नहीं है। हमारी व्यथा समझिए। गन्ना किसान एक साल से अपने भुगतान का इंतज़ार कर रहे हैं। हमेशा ऐसा ही होता रहता है। तब क्या होगा कि मैं आपसे कहूं कि आपका वेतन आपको एक साल बाद मिलेगा? इस व्यवस्था को खत्म होना होगा।"
सिंह आगे कहते हैं, "युवा किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि ट्रेन रोकने और हाईवे बंद करने की कार्रवाईयों के लिए, जिन्हें जन प्रतिरोध के हिस्से के तौर पर किया गया था, इन युवाओं पर आपराधिक मुक़दमे दायर कर दिए गए हैं। इन मुक़दमों को खारिज़ होना होगा। हम उनके ऊपर यकीन नहीं कर सकते। जैसे ही आंदोलन ख़त्म होगा और हमारे मुक़दमे कायम रहेंगे, तो यह लोग हमारे खून के प्यासे हो जाएंगे।
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Farmers Prepare for Long Haul for MSP, Cancellation of Criminal Cases after Partial Victory
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