भारत को सऊदी अरब से मिला वेज बर्गर

वास्तव में 20 फरवरी को दिल्ली में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद की पहली राजकीय यात्रा,जो एक दिन के लिए या कहे वास्तव में, आधे दिन से थोड़ा अधिक की यात्रा थी – जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर आयोजित किया गया था, सवाल उठता है आखिर यह यात्रा किस लिए थी? ऐसा लगता है जैसे कि यह सूखी घास के ढेर में सुईं ढूंढने की तरह थी।
वास्तव में, यह एक अजीब सी घटना थी, जो प्रोटोकॉल से पूरी तरह लबालब भरी हुई थी, साथ ही यह रायसीना हिल पर स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय के बीच कड़ाई से पालन किए गए एक अलग तरह के संबंध को दर्शा रही थी, जो फ्रीमेसन के गुप्त समाज की याद दिलाती है, इसलिए यह पूर्ण रूप से परंपरा और व्यापक प्रतीकवाद की "बेवकूफ शपथ" में लिपटी हुई यात्रा थी।
क्राउन प्रिंस की यात्रा के दौरान पांच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। बेशक, साउथ ब्लॉक में हमेशा यह एक बड़े मज़ाक का मुद्दा रहा है कि ऐसे एमओयू कभी कार्यान्वयन के लिए नहीं होते हैं, बल्कि वे मात्र फोटो खिंचवाने के लिए होते है, लेकिन फिर भी संबंधित मंत्रालयों को आमतौर पर इस तरह के अवसर और उद्देश्य को हवा देने के लिए शामिल किया जाता है।
लेकिन इस तरह का घमंडी नज़रिया जो कि इस यात्रा से स्पष्ट रूप से ज़ाहिर होता है उसका इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है, की अकेले रियाद में ही हमारे राजदूत ने पांच एमओयू में से तीन पर हस्ताक्षर करने की रस्म निभाई है। इसलिए यह देश के दौरे के दौरान भारतीय प्रोटोकॉल में कभी भी एक मिसाल नहीं हो सकती है।
जाहिर तौर पर, ये एमओयू स्पष्ट तौर पर इतने असंगत हैं कि पीएमओ ने खुद निर्णय लिया कि संबंधित भारतीय मंत्रालयों के शीर्ष अधिकारियों जैसे - वित्त और निवेश, आवास, पर्यटन, सूचना - को इस तरह के परंपरावादी अनुष्ठान में समय बर्बाद करने के लिए इन्हे शामिल नहीं करना चाहिए।
लगभग 2066 शब्दों का जारी संयुक्त बयान, जिसे यात्रा के बाद दिल्ली में जारी किया गया था, केवल इस बात की ही तस्दीक करता है कि इस पूरी यात्रा के उल्लेख के लायक उसमें कोई मूल सामग्री नहीं है।
तो, इसमें बीफ़ कहाँ है? (बिना पहल के लाभ के लिए, शहरी शब्दकोश में, यह एक विचार, घटना या उत्पाद के पदार्थ पर सवाल उठाने वाला एक सर्व-उद्देश्यीय वाक्यांश है।) हाँ, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की तुलना में इस सऊदी बर्गर में बीफ नहीं था जिसकी इमरान खान ने मांग की थी और उसे हासिल भी किया।
लेकिन एक वेज बर्गर का होना भी कोई खराब बात नहीं है। यह भी स्वस्थ आहार है। कहने के लिए, क्राउन प्रिंस की यात्रा के बाद उनके स्वागत के लिए मोदी का दिल्ली हवाईअड्डे पर होना एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसे वैसे तो गर्मजोशी से गले मिलने और फूलों के गुलदस्ते के साथ सम्मान के लिए किया गया था। इसका कोई ओर मतलब निकालने की कतई आवश्यकता नहीं है कि सऊदी अरब भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार देश है।
भारत के साथ उनके इस संबंध को सावधानीपूर्वक संरक्षित करने की आवश्यकता है, जिसे नवंबर के अंत में G20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर अर्जेंटीना में उनकी पिछली बैठक में स्थापित किया गया था।
इसमे कोई शक नही की सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस की भारत यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और एकमात्र उद्देश्य सऊदी अरामको और रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच रिश्तों को मज़बूत करना था।
बहुत से लोगों ने दिसंबर में देखा होगा कि सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री खालिद अल फलीह, जो खुद एक पुराने अरामको के टेक्नोक्रेट हैं, मुकेश अंबानी की बेटी की शादी के लिए हुए पूर्व-विवाह समारोह में शामिल होने के लिए भारत आए थे। अल फलीह ने उस समय अंबानी के साथ बैठक के बाद ट्वीट किया था: कि "हमने पेट्रोकेमिकल, रिफाइनिंग और संचार परियोजनाओं में संयुक्त निवेश और सहयोग के अवसरों पर चर्चा की है।"
हालांकि तथ्य यह है कि रत्नागिरी में 44 अरब डॉलर की मेगा रिफाइनरी-कम-पेट्रोकेमिकल परियोजना अधकचरी है और 2025 की समय सीमा (जिसमें सउदी 11 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए सहमत हुए हैं) को पूरा नहीं कर सकी है, इस पृष्ठभुमि में सऊदी अरामको अन्य निवेश के अवसरों की तलाश में है।
सऊदी विशेष रूप से आकर्षक खुदरा ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश करने के इच्छुक हैं, जिसमें बहुत अधिक संभावनाएं हैं मौजूद और जो धंधे के हिसाब से अत्यधिक आकर्षक भी है। सऊदी अरामको एक श्रेष्ठ भारतीय सहयोगी की तलाश कर रहा है और उसका विकल्प भी तलाश रहा है, लेकिन मोदी की मेहरबानी से, रिलायंस यह ट्रॉफी जीत सकता है।
सऊदी अरामको : राजस्व की दृष्टि से दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है- 465.5 अरब डॉलर के राजस्व की कीमत की है- और ब्लूमबर्ग न्यूज के अनुसार यह दुनिया की सबसे लाभदायक कंपनी है, इसका करीब 2 खरब डॉलर तक का बाज़ार मूल्य है।
वैसे, क्राउन प्रिंस की यात्रा से पहले सऊदी अरामको के सीईओ अमीन अल नासिर ने मुकेश अंबानी से जनवरी में मुलाकात की थी ताकि क्राउन प्रिंस की इस यात्रा से पहले इसकी तैयारी की जा सके।
बेशक, भारत के ऊर्जा क्षेत्र में सऊदी निवेश की गुंजाइश बहुत अधिक है। यह स्वर्ग में बना एक संबंध लगता है - भारतीय अर्थव्यवस्था का विस्तार इस दर पर हो रहा है कि इसे ऊर्जा के विशाल भंडार की जरूरत है और सऊदी अरब एक ऊर्जा महाशक्ति है। क्राउन प्रिंस की राय के अनुसार इस क्षेत्र में 100 अरब डॉलर के निवेश की गुंजाइश रखता है।
स्पष्ट रूप से, भारत को उन सभी सऊदी निवेशों का उत्सुकता से स्वागत करना चाहिए जो हमारी अर्थव्यवस्था में लनाने के इच्छुक हैं। उस दिशा में भारतीय कूटनीतिक एकाग्रता से भारी और उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए।
इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि, हवा में बहुत धूल है और सऊदी और पाकिस्तानी नज़दीकी मित्र हैं। तो इससे हमें ज्यादा फर्क नही पढ़ना चाहिए?
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच भाईचारे का संबंध रहा है और वह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और अत्यधिक रणनीतिक भी रहा है क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने पारंपरिक रूप से सऊदी शासन के लिए प्रेटोरियन गार्ड के रूप में काम किया है और सुरक्षा के प्रदाता के रूप में यह भूमिका न केवल बहुत प्रासंगिक है बल्कि अब मध्य पूर्व से अमेरिका की वापसी की सुस्त दहाड़ के कारण भी आगे की अवधि में सऊदी शाही परिवार के अस्तित्व की चिंता का सवाल इससे जुड़ा हुआ है।
भारत बहुत बड़ा देश है इसके लिए अरब के प्रति शून्य रवैया रखना वाज़िब नही है - या तो आप हमारे साथ हैं, या पाकिस्तानियों के साथ ’ यह नज़रिया देश के हिट में नही है। यह भी सच है कि सउदी कश्मीर मुद्दे के बारे में गलत धारणा रखते हैं, लेकिन उन्हें यह अच्छी तरह से समझ में आ रहा है कि भारत की क्षेत्रीय सीमाओं के बारे में पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन पवित्र मस्जिदों के कस्टोडियन के रूप में, सऊदी राजा कहीं भी मुसलमानों के कल्याण पर आवाज उठाने के लिए बाध्य है। जब तक कि वह भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में ऐसा नहीं करता है या उसका नजरिया जमीन पर घुसपैठ की प्रवृत्ति में नही बदलता है, तो उससे संबंध बनाने में समस्या क्या है?
क्या जम्मू-कश्मीर में घाटी में लोगों के गहरे अलगाव से निपटने के लिए सऊदी कोई रुकावट पैदा कर रहे हैं? इसके अलावा, सऊदी से उम्मीद करने कि वे हमारे खेमे शामिल हो जाएंगे और पाकिस्तान को बरगलाने की उम्मीद करना बेमानी है। जाहिर है, सऊदी धारणा में, भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद एक समस्या बनी हुई है, जब तक कि कश्मीर समस्या अनसुलझी है।
सऊदी विश्व समुदाय से अलग राय रखता हैं कि भारत और पाकिस्तान को अपने मतभेदों और विवादों को सुलझाने के लिए द्विपक्षीय रूप से प्रयास करना चाहिए और जिसका कश्मीर एक मुख्य मुद्दा होना चाहिए। यह सऊदी प्रिंस की पाकिस्तान यात्रा के दौरान संयुक्त रूप से जारी बयान में परिलक्षित होता है।
आज सऊदी रुख वास्तव में भारत-पाकिस्तान तनाव के संबंध में विश्व समुदाय के बहुमत की राय का हिस्सा है। बेशक, यह कहना नहीं चहिए कि सऊदी आतंकवाद के प्रति अपने स्वयं के दृष्टिकोण में लिलि के सफेद फूल की तरह से हैं। वास्तव में, सऊदी अरब और पाकिस्तान अपनी विदेश नीतियों में आतंकवाद को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, क्षेत्रीय राजनीति में सहयोगी के रूप में दोनों देशों के बीच आज एक फौस्टियन (फौजी मोलभाव करना) समझौता है। (मेरा ब्लॉग देखें पुलवामा के भूराजनीतिज्ञ।)
हालांकि, लब्बोलुआब यह है कि हमारे देश के विकास के वर्तमान चरण में जियोइकोनॉमिक्स को भारतीय कूटनीति के सारथी के रूप में प्रबल होना चाहिए। पश्चिम एशिया के संबंध में, यह महत्वपूर्ण है।
भारत की ओर से सऊदी प्रस्ताव का तिरस्कार करना एक हिमालयी विस्फोट होगा। सउदी लोग चाक से अनाज को अलग करना जानते हैं और जानते हैं कि पाकिस्तान भारत पर एक दाग के रूप में नहीं है बल्कि संभावित रूप से एक विश्वस्तरीय साझेदार है। जैसा कि रूस के साथ उनके स्वयं के तेजी से बढ़ते संबंधों से पता चलता है, सऊदी हवा में कई गेंदों को एक साथ उछालने में पूरी तरह से सक्षम हैं और कई लोगों के साथ उन्हे एक साथ लटका भी सकते हैं, आमतौर पर उन्हें जाने बिना।
सौजन्य: इंडियन पंचलाइन
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।