बेलगाम होती योगी की पुलिस! यूपी में बदस्तूर जारी है राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन

जरा सोचिए हाथ पैरों से लाचार, व्हील चेयर पर बैठा कोई व्यक्ति क्या पुलिस पर हमला कर सकता है। क्या पुलिस की गाड़ी का शीशा तोड़ सकता है, जो खुद शारीरिक अस्वस्थता से जूझ रहा हो क्या पुलिस को धमकी दे सकता है, शांति भंग करने की कोशिश कर सकता है। आप कहेंगे हरगिज नहीं लेकिन उत्तर प्रदेश के योगी सरकार की पुलिस के लिए ये सबकुछ होना संभव है।
पत्नी और बेटी के साथ मो. कलीम
व्हील चेयर पर बैठे, सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज के रहने वाले, 51 वर्षीय मो. कलीम लकवाग्रस्त हैं। दोनों पैरों और दोनों हाथों ने काम करना छोड़ दिया है। गर्दन भी घुमाने में असमर्थ हैं। बस किसी तरह पूरा दम लगाकर बोल भर लेते हैं, जी हां बस बोलभर लेते हैं, इतना सकून जरूर है क्योंकि उनका बोलना बहुत जरूरी है और वो इसलिए क्योंकि मो. कलीम हर उस इंसान की आवाज़ हैं जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा है, हर उस वर्ग की आवाज़ हैं, जिन्हें आज भी बोलने का अधिकार नहीं।
उनके ऊपर योगी सरकार की पुलिस द्वारा कई मुकदमें दर्ज हैं, अभी फिलहाल दो महीने की पैरोल पर जेल से बाहर आए हैं बावजूद इसके उनके जज्बे और हिम्मत में कहीं कोई कमी नजर नहीं आती।
मो. कलीम लंबे समय से भाकपा माले से जुड़े हैं और अपने इलाके में मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर भी जाने जाते हैं। वे कहते हैं हम आंदोलनकारी लोग हैं, सरकार की जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ सड़क पर उतर कर संघर्ष करते हैं, सरकार से सवाल करने का दम रखते हैं तो लाज़िमी है कि हमें निशाना भी बनाया जाएगा और फर्जी मुकदमों में भी फंसाया जाएगा।
बीते 5 जून को उन्हें और उनकी सोलह साल की बेटी को पुलिस पकड़ कर ले गई। CAA, NRC विरोधी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के दौर से ही कलीम और उनका परिवार पुलिस के निशाने पर आ गया था। रही सही कसर किसान आंदोलन ने पूरी कर दी। फिलहाल कलीम पैरोल पर हैं लेकिन उनकी पत्नी और नाबालिग बेटी पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है।
मो.कलीम को गिरफ़्तार करके ले जाती पुलिस: फोटो सौजन्य पोल खोल पोस्ट
आख़िर कौन है यह मो. कलीम और क्यूं योगी सरकार की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं, इसे जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यही वो सच है जो हमें इतना समझाने के लिए काफी है कि यदि आप लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने की लड़ाई लड़ते हैं, सत्ता के शोषण और दमन के ख़िलाफ़ आवाज बुलंद करते हैं, आप सड़क पर उतर कर आंदोलन करने का दम भरते हैं, कुल मिलाकर सरकार की जनविरोधी नीतियों पर सरकार से सवाल करने की हिम्मत रखते हैं तो सच मानिए आजकल आपके लिए केवल एक ही जगह सरकार ने निश्चित की है और वह है जेल।
लगातार हमारे सामने ऐसे मामलों की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है, जहां सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाली संघर्षशील ताकतों को निशाना बना, उन पर फर्जी मुकदमें लादकर जेलों में ठूस दिया जा रहा है। सरकार इन ताकतों से लड़ नहीं सकती, हां इन्हें तोड़ने के लिए इनके खिलाफ़ साजिश तो रच ही सकती है, तो इन्हीं साजिशों के शिकार में एक नाम और जुड़ता है और वे है मो. कलीम। पर हां यहां अकेले वे ही नहीं उनकी नाबालिग बेटी और पत्नी भी फर्जी मुकदमों का भार झेल रही हैं।
वंचितों की आवाज़ हैं मो. कलीम
मो. कलीम बताते हैं जब से होश संभाला तब से हाथ में लाल झंडा ही थामे हुए हैं क्योंकि उनका पूरा परिवार हमेशा से वामपंथी विचारधारा को मानने वाला रहा। उनके दादा जी से लेकर उनके माता पिता ने अपना पूरा जीवन कम्युनिस्ट आंदोलन को आगे बढ़ाने में लगा दिया। वे तीसरी पीढ़ी हैं जो इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और अब उन्हें खुशी है कि उनकी पत्नी और बच्चे भी पूरी शिद्दत से समाज की बेहतरी के लिए अपना जीवन दे रहे हैं। मो. कलीम जल, जंगल, ज़मीन की लड़ाई के हमेशा अगुवा रहे और आज भी यह संघर्ष जारी है। उनका पूरा परिवार भी उनके संघर्ष का साथी है।
मो. कलीम के तीन बच्चे हैं, दो बेटे और एक बेटी। भाईचारे और मानवता की मिसाल मो. कलीम ने जिस अंदाज़ से बच्चों के नाम रखे हैं, वह हम सब के बीच एक मिसाल है। वे गर्व से कहते हैं उनके एक बेटे का नाम भगत सिंह है तो दूसरे बेटे का नाम अशफ़ाक़ उल्ला खां है तो वहीं बेटी का नाम अमीना खातून रखने साथ साथ चारु मजूमदार से प्रेरित होकर बेटी चारु भी रखा। कलीम जी की एक विशेषता है कि वे गाते बहुत अच्छा है और जनवादी गीतों के माध्यम से भी लोगों के बीच जागरूकता लाने का काम कर रहे हैं और अब तो तीनों बच्चे भी उनके साथ गाते हैं। पढ़ाई के साथ साथ तीनों अपने पिता के साथ आंदोलनों का भी हिस्सा बनते हैं ।
पुलिस की ही लाठियों ने बना दिया अपाहिज!
आज भले ही कलीम हाथ पैरों से लाचार हो गए हों लेकिन हमेशा से यह स्थिति नहीं थी। महज दो महीना पहले तक वे चल फिर सकते थे। कोई ऐसा दिन नहीं होता था, जब वे लोगों के बीच मौजूद न रहते हों। वे मानते हैं कि जब जीवन गरीब, मजलूमों, वंचितों के लिए समर्पित कर दिया तो हर एक दिन पर उनका ही अधिकार है और यही कारण रहा कि अपनी बिगड़ते शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया और आज उन्हें व्हील चेयर पर आना पड़ा। पुलिस की ही लाठियों ने उन्हें आज इस स्थिति पर पहुंचा दिया।
मो. कलीम बताते हैं कि करीब दो दशक पहले उत्तर प्रदेश में हुए भवानीपुर कांड के दौरान पुलिस ने जमकर उनको लाठियों से पीटा था जिसके बाद उनके पैरों और कमर में दर्द रहने लगा। हालांकि अपनी व्यस्तताओं के कारण वे कभी इस दर्द का उचित इलाज न करवा सके। पिछले दो महीनों से उनकी फिजियोथैरेपी जारी है, इसके बावजूद लड़ने के उनके हौसले पस्त नहीं हुए अपनी व्हील चेयर पर ही पार्टी का झंडा बांधकर निकल पड़ते हैं लोगों के बीच। सचमुच उनके इस हौसले को सलाम।
गरीब बच्चों के लिए चलाते हैं निशुल्क शिक्षा केन्द्र
पढ़ाई से वंचित गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए मो. कलीम अपने स्तर से “राष्ट्रनायक शहीद ए आजम भगत सिंह, दुर्गा भाभी निशुल्क शिक्षा केन्द्र” चलाते हैं। केंद्र के नाम में भगत सिंह के साथ दुर्गा भाभी का नाम जोड़ने के पीछे वे बताते हैं कि जब वे छोटे थे तो, लखनऊ में दुर्गा भाभी द्वारा संचालित स्कूल में रहकर काम भी करते थे और वहां बहुत कुछ सीखते भी थे। यह सन 1980 से लेकर 1995 तक का दौर था। उन्हें गर्व है कि उन्हें उन दुर्गा भाभी के सानिध्य में रहने का मौका मिला जिनका नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। उन्हीं से प्रेरणा लेकर उनके भीतर शिक्षा केंद्र खोलने की भावना विकसित हुई।
कलीम कहते हैं, “गरीब का बच्चा जब सरकारी स्कूल जाता है तो उसे किताबे, ड्रेस, खाना तो मिल जाता है लेकिन जिस स्तर की शिक्षा मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाती और माता पिता के पास इतनी पूंजी नहीं होती कि वे अलग से उसे कोचिंग दिला सके, ऐसे बच्चे पढ़ाई से विमुख न हो जाएं इसलिए उन्होंने निशुल्क शिक्षा केन्द्र खोलने का कदम उठाया।” अभी इन शिक्षा केंद्रों की संख्या पांच है जिनमें कक्षा केजी से लेकर हाईस्कूल तक के करीब पांच सौ बच्चे आते हैं। यहां उन्हें स्कूली शिक्षा दिए जाने के साथ मानवीय मूल्य आधारित शिक्षा भी जाती है ताकि भविष्य के लिए एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जा सके जो धर्म, जाति के बन्धन से ऊपर उठकर इंसानियत का सबक सीखे।
और हो गए योगी सरकार के आंखों की किरकिरी
बीते 5 जून को आखिर उनकी और उनकी 16 वर्षीय बेटी की गिरफ्तारी क्यों हुई इसे भी जान लीजिए।
हम जानते हैं जब से प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार सत्तासीन हुई है उसका पूरा जोर ऐसी ताकतों को निशाना बनाने पर है जो सरकार से टकराने का हौसला रखती हैं और उस पर अगर आप वामपंथी विचारधारा के पोषक हैं, तो आपके लिए चुनौतियां कम नहीं।
मो. कलीम बताते हैं कि यूं तो एनआरसी, सीएए विरोधी आंदोलन के समय से ही वे और उनका परिवार पुलिस के निशाने पर है, और जब से वे अपने क्षेत्र में किसान आंदोलन के अगुआ हुए हैं तब से चुनौतियां और बढ़ गई हैं और उनपर केस दर्ज किए जा रहे हैं।
वे बताते हैं कि “संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान पर पांच जून को भाकपा (माले) के प्रतिनिधिमंडल ने एसडीएम राबर्ट्सगंज को ज्ञापन सौंपा एवं कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की। प्रतिनिधि मण्डल में, वह (मो. कलीम), उनकी बेटी अमीना और पत्नी नाजमा खातून भी शामिल थीं। ज्ञापन देकर वापस आते समय फिजियोथेरेपिस्ट के पास वे और उनकी बेटी अमीना फिजियोथेरेपी करवाने के लिए रुक गए क्योंकि वे लकवाग्रस्त हैं और प्रत्येक दिन उनकी फिजियोथैरेपी होनी जरूरी है”।
कलीम के मुताबिक “वहीं पर राबर्ट्सगंज के चौकी प्रभारी आ गए और उन्हें (कलीम को) गिरफ्तार करने लगे। जब उनकी बेटी ने गिरफ्तारी का विरोध किया तो, विरोध करने पर न केवल दोनों के साथ मारपीट की गई बल्कि बेटी का बाल पकड़ते हुए उसे जमीन पर गिरा दिया और गाली गलौज करते हुए उसके साथ अभद्र व्यवहार किया। उसका मोबाइल भी छीन लिया। एक नाबालिग लड़की के साथ ये सारी हरकत पुरुष चौकी प्रभारी ने की जबकि उस समय कोई महिला पुलिस मौजूद नहीं थी। हद तो तब हो गई जब घर पर मौजूद पत्नी को भी सरकारी काम काज में बाधा डालने का आरोपी बताते हुए फर्जी तरीके से मुकदमा दर्ज कर दिया गया।”
अमीना के मुताबिक चौकी प्रभारी ने उनके साथ बेहद अभद्र व्यवहार किया और ऐसे शब्द बोले जो यौन हिंसा के दायरे में आते हैं।
मो. कलीम उनकी पत्नी नाजमा खातून और बेटी पर 332, 336, 353, 427, 504 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। मो. कलीम पर पहले भी पुलिस गुंडा एक्ट लगा चुकी है।
तेज़ हुई न्याय की लड़ाई
भाकपा (माले) राज्य सचिव सुधाकर ने चौकी प्रभारी राबर्ट्सगंज के इस कृत्य की घोर निन्दा करते हुए कहा कि कलीम के साथ और उनकी युवा बेटी चारु (अमीना) के साथ पुरुष चौकी प्रभारी द्वारा मारपीट करना न केवल लोकतंत्र विरोधी है बल्कि अपराध और बेहद ही शर्मनाक है। माले नेता ने चौकी प्रभारी राबर्ट्सगंज को तत्काल निलंबित करने एवं उनके विरुद्ध महिला के साथ अभद्रता करने के मामले में मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करने की मांग की है। पार्टी ने चेतावनी दी है कि पार्टी इस मुद्दे को लेकर जन अभियान में उतरेगी और संघर्ष तेज करेगी।
अखिल भारतीय प्रगतिशील माहिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने चौकी प्रभारी द्वारा चारु (अमीना) के साथ किए गए कृत्य को यौन हिंसा बताते हुए बीते दिनों आंदोलन किया। ऐपवा की मांग है कि नाबालिग अमीना खातून के साथ यौन हिंसा करने वाले चौकी इंचार्ज का निलंबन हो और उन पर पॉक्सो के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए।
ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा कहती हैं मुख्यमंत्री योगी के राज में मुसलमानों, आंदोलनकारियों और महिलाओं पर हिंसा करने की खुली छूट पुलिस को मिल चुकी है, और चूंकि योगी सरकार हर मोर्चे पर फेल साबित हो रही है तो इनके पास कोई ठोस कार्य नहीं। महिलाओ के लिए यूपी सुरक्षित नहीं रह गया है। इन सभी जन मुद्दों को भुलाकर आगामी विधानसभा चुनाव में टारगेट कर रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब सिर्फ़ हिन्दू मुसलमानों के बीच नफ़रत फैलाने के एजेंडे की राजनीति करके ही आगे बढ़ना चाह रहे हैं। इसी कारण से मुख्यमंत्री ने प्रदेश की पुलिस को मुस्लिम समुदाय और आंदोलनकारियों को प्रताड़ित करने और उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज देने का लाइसेंस दे दिया है।
बहरहाल न्याय की इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए हुए मो. कलीम अदालत में अपने ऊपर लगी धाराओं के खिलाफ रिट दाखिल करने की तैयारी में हैं।
कलीम भले पैरोल पर बाहर हैं लेकिन उनकी पत्नी और बेटी को पुलिस कभी भी गिरफ्तार कर सकती है। कलीम कहते हैं "हमें पता है हमारे लिए चुनौतियां और भी हैं, लड़ाई अभी लंबी है लेकिन जब सिर पर कफ़न बांधकर जिंदगी दांव पर लगा ही दी तो डरना कैसा"..... और हंसते हुए कहते हैं "ठहरे हुए पानी को देखकर किनारे पर कभी घर मत बनाना... मैं वो समुंदर हूं कि वापस आऊंगा...."
(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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