'राइटिंग विद फायर’ को नहीं मिला ऑस्कर, लेकिन 'खबर लहरिया' ने दिल ज़रूर जीत लिया

ऑस्कर 2022 में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री के लिए नामित भारत की पहली डॉक्यूमेंट्री राइटिंग विद फायर को अकादमी पुरस्कारों में भले ही निराशा हाथ लगी हो, लेकिन इस फिल्म ने देश के हाशिए पर पड़े तबक़े की खबर दिखाने वाले 'खबर लहरिया' और उसे चलाने वालों की कहानी को दुनिया तक जरूर पहुंचा दिया है। खबर लहरिया केवल महिलाओं के द्वारा चलाया जाने वाला देश का इकलौता न्यूज़ नेटवर्क है, जो अपनी ख़बरों के ज़रिए स्थानीय मुद्दों, ग्रामीण विकास, किसानों की ख़ुदकुशी, भ्रष्टाचार, महिलाओं के साथ होने वाले जुर्म और पानी के संकट के बारे में ख़बरें दिखाता है।
बता दें कि राइटिंग विद फायर का सबसे पहले पिछले साल प्रतिष्ठित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर किया गया था। यहां इस डॉक्यूमेंट्री ने दो अवॉर्ड्स जीते थे। तब से लेकर अब तक इस डॉक्यूमेंट्री को दुनिया के 100 से ज़्यादा फिल्म फेस्टिवल्स में प्रदर्शित किया जा चुका है और इसने कुल 28 अवॉर्ड्स अपने नाम किये हैं। हालांकि, इसे अभी तक भारत में नहीं दिखाया गया है।
क्या है डॉक्यूमेंट्री की कहानी?
जब आप ‘राइटिंग विद फायर’ डॉक्यूमेंट्री या उसका ट्रेलर देखेंगे, तो एक बात आपको खबर लहरिया की पत्रकारों से कई बार सुनने को मिलेगी- ‘मुझे डर लग रहा है’। ये डर क्यों लग रहा है क्योंकि वो महिलाएं वाकई अपनी जान की बाजी लगाकर पत्रकारिता कर रही हैं। वो पुलिस से सवाल कर रही हैं कि गांव के उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई, जिस पर एक लड़की के साथ रेप करने का आरोप है। वो दलितों की बेहतरी की बात करने वाले नेताओं से उनके वादे पर फॉलो-अप लेती हैं। खनन माफियाओं की लापरवाही से मरने वाले मजदूरों पर बात कर रही हैं। वो बिना डरे और बिना झुके ताक़तवर लोगों को कठघरे में खड़ा करती हैं। उनसे मुश्किल सवाल पूछती हैं। पुलिस के अफ़सरों और ताक़तवर पुरुषवादी नेताओं को सच का आईना दिखाकर उनके लिए चुनौती पेश करती हैं।
इस पोर्टल की एडिटर इन-चीफ मीरा देवी हैं, जिनकी 14 साल की उम्र में शादी हो गई थी। लेकिन बच्चों को बड़ा करने के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी। उनके पास तीन डिग्रियां हैं मगर उनके पति नहीं चाहते कि वो ये काम करें। ‘राइटिंग विद फायर’ के एक सीन में उन्हें मीरा के सफल नहीं होने की बात कहते सुना जा सकता है।
ख़बर लहरिया की शुरुआत करीब दो दशक पहले उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और फिर बेहद पिछड़े कहे जाने वाले बुंदेलखंड से एक मासिक अखबार के प्रकाशन से हुई थी, जिसे रिपोर्टर्स खुद पैदल चलकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में पहुंचाया करती थीं। इसे समाज की तमाम मुश्किलें झेलते हुए दलित महिलाओं ने अपनी हिम्मत से शुरू किया था और अब इसमें काम करने वाली पत्रकारों में बाल खनन मज़दूर रह चुकी महिलाएं, बाल विवाह की शिकार, घरेलू हिंसा और शोषण की शिकार औरतें शामिल हैं। ये सभी स्थानीय महिलाएं हैं, जिन्होंने भेदभाव और शोषण को सहा है और आज भी समाज के वर्गभेद, लिंग भेद और जातीय भेदभाव की शिकार हैं। ये सभी महिलाएं जो कहानियां सुनाती हैं, उनमें से कई ख़बरें तो उनका अपना तजुर्बा होती हैं।
खबर लहरिया ने खुद को डॉक्यूमेंट्री से किया अलग
राइटिंग विद फायर डॉक्यूमेंट्री में ख़बर लहरिया के प्रिंट से डिजिटल चैनल के रूप में हुए बदलाव की कहानी को पेश किया गया है। इसके ट्रांज़िशन वाले फेज़ में दिखाया गया है कि किस तरह जिन महिलाओं ने अपने जीवन में कभी स्मार्टफोन या कैमरा इस्तेमाल नहीं किया था, उन्होंने कैसे टेक्नॉलोजी को लोगों तक पहुंचने का ज़रिया बनाया। इस पूरे सफर के दौरान ख़बर लहरिया की प्रबंध संपादक मीरा देवी और उनकी दो संवाददाताओं के संघर्ष को भी पर्दे पर दिखाया गया है।
हालांकि, खबर लहरिया ने 27 मार्च को अमेरिका के लॉस एंजिलिस में ऑस्कर पुरस्कारों के एलान से ठीक पहले ख़ुद को 'राइटिंग विद फायर' डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म से अलग कर लिया और फिल्म बनाने वालों पर आरोप लगाया कि उन्होंने ख़बर लहरिया की कहानी को 'तोड़-मरोड़कर' पेश किया है।
अपनी वेबसाइट पर जारी किए गए एक बयान में ख़बर लहरिया ने कहा कि इस फिल्म में उनके पत्रकारों को जिस तरह राज्य की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के कट्टर हिंदुत्ववादी एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करते दिखाया गया है, वो ग़लत तस्वीर पेश करता है। उन्होंने तो पिछले दो दशकों से कई पार्टियों के बारे में ख़बरें दी हैं और सभी को तब 'आईना दिखाया है, जब उन्होंने अपने किए गए वादे पूरे नहीं किए।'
खबर लहरिया की संपादक कविता बुंदेलखंडी ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से कहा, "हमें इस बात पर बहुत गर्व है कि हमारे संगठन पर इस तरह का वृत्तचित्र बनाया गया....हम जानते हैं कि स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के पास यह विशेषाधिकार है कि वे अपने ढंग से कहानी पेश कर सकते हैं, लेकिन हमारा यह कहना है कि पिछले 20 वर्षों से हमने जिस तरह की स्थानीय पत्रकारिता की है या करने की कोशिश की है, फिल्म में वह नजर नहीं आती।"
कविता ने 2 साल पहले न्यूज़क्लिक वेबसाइट से बात करते हुए कहा था, "पहले माना जाता था कि महिलाएं पत्रकार नहीं हो सकती हैं। हमने इस धारणा पर चोट की है। हमारी रिपोर्टर्स ऐसे इलाकों से खबरें लाती रही हैं, जहां मेनस्ट्रीम नहीं पहुंच पाता था। शुरुआत में हमपर समाज में, प्रशासन में काफी सवाल उठाए गए। हम इन चुनौतियों को झेलकर आगे बढ़े हैं।''
कविता आगे कहती हैं, "हम अपने रिपोर्टर्स को पत्रकारिता की बेसिक ट्रेनिंग देते हैं। उन्हें बताते हैं कि फील्ड में कैसा व्यवहार रखना है। हम हर तरह की खबरें कवर करते हैं, हम महिलाओं पर रिपोर्टिंग करते हैं, हिंसा पर रिपोर्टिंग करते हैं, सरकारी योजनाओं के लागू करने में खामियों को उजागर करते हैं। पर्यावरण से जुड़ी खबरें भी करते हैं। बुंदेलखंड के लोगों को होने वाली हर परेशानी को हम कवर करते हैं। ग्रामीण आवाज को बाहर तक पहुंचना बहुत जरूरी है।
ताक़तवर लोगों को सच का आईना दिखाती है खबर लहरिया की टीम
वैसे इस डॉक्यूमेंट्री को बनाने वालों ने इन तमाम आरोप का खंडन किया है। रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने मिलकर इसे डायरेक्ट और प्रोड्यूस किया है। डेडलाइन को दिए एक इंटरव्यू में दोनों लोग बताते हैं कि खबर लहरिया पर डॉक्यूमेंट्री बनाने का आइडिया उन्हें कैसे आया।
वे बताते हैं, "राइटिंग विद फायर” की कहानी एक सिंपल फोटो के साथ शुरू हुई थी। हमने ऑनलाइन एक दलित महिला की फोटो देखी, जो मर्दों की भीड़ के बीच खड़े होकर उनसे सवाल पूछ रही थी। वो बड़ी पावरफुल तस्वीर थी। इसी फोटो ने हमें खुद से सवाल करने को मजबूर किया कि आखिर जर्नलिज़्म होता क्या है? कौन सी चीज़ न्यूज़ होती है? हमें किन खबरों या कहानियों को लोगों तक पहुंचाना चाहिए? उन्हीं सवालों का जवाब है ये डॉक्यूमेंट्री।”
गौरतलब है कि कभी अखबारी पन्नों के माध्यम से शोषितों वंचितों की आवाज़ सुनाती ये समाचार सेवा 2015 से पूरी तरह से डिजिटल हो चुकी है और अब यह चंबल मीडिया का एक अंग है। यू-ट्यूब पर इसके पांच लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं, और हर महीने इस चैनल को औसतन एक करोड़ व्यूज़ मिलते हैं। इस संस्थान ने अपने रिपोर्टर्स को स्मार्टफोन, जिसके जरिए ये महिला पत्रकार अलग-अलग इलाकों में जाकर रिपोर्ट तैयार करती हैं। हाल ही में इसपर अंग्रेजी खबरों की सेवा भी शुरू की गई है।
इस संस्थान की महिला पत्रकारों की टीम को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा चुका है। सबसे पहले साल 2004 में खबर लहरिया को चमेली देवी जैन अवॉर्ड मिला। साल 2009 में इसे टयूनेस्को को किंग सेजोंग लिटरेसी प्राइजट से सम्मानित किया गया। इसके अलावा लाडली मीडिया अवॉर्ड, टाइम्स नाउ के अमेजिंग इंडियन, कैफी आजमी अवॉर्ड, ग्लोबल मीडिया फोरम अवॉर्ड आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
खबर लहरिया अपने आप में एक क्रांति का प्रतीक है। खासकर ऐसे समय में जब देश में पत्रकारिता एक मुश्किल दौर से गुज़र रही है। जहां बहुत से नामी पत्रकार बिना कोई सवाल उठाए सरकार की कही हुई बातें दोहराते नज़र आते हैं, वहीं खबर लहरिया की महिलाएं नई तकनीक का इस्तेमाल कर अपने घरों और समुदायों के भीतर पुरातन परंपराओं को चुनौती देती हैं। पुलिस के अफ़सरों और ताक़तवर पुरुषवादी नेताओं को सच का आईना दिखाकर उनके लिए चुनौती पेश करती हैं।
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