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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित करने के लिए मार्च तक इंतज़ार क्यों किया ?

संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीयी देशों द्वारा 2005 के नियमों के तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बनाया गया, जिससे डब्ल्यूएचओ की आपातकाल और महामारी घोषित करने की क्षमता में बाधा पड़ी।
Wuhan Hospital

जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अपनी सरकार की फ़ंडिंग में कटौती की, तो उनकी एक शिकायत यह भी थी कि डब्ल्यूएचओ चीन के संरक्षण में वैश्विक कोरोनावायरस के प्रकोप को जल्द ही एक महामारी के रूप में घोषित करने में नाकाम रहा। हालांकि हुबेई प्रांत के अस्पताल में मरीज़ों की भर्ती करायी जाने के साथ ही इस चीनी चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस वायरस को डब्ल्यूएचओ के संज्ञान में लाने में कोई कोताही नहीं की। डब्ल्यूएचओ ने जनवरी की शुरुआत में ही वुहान में एक टीम भेजकर इस वायरस की जांच-पड़ताल की, और जो भी विश्वसनीय सूचना मिल सकती थी,उसे सार्वजनिक कर दिया गया था।

डब्ल्यूएचओ की अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (2005) आपातकालीन समिति की जनवरी में दो बार बैठक हुई। पहले यह बैठक 22-23 जनवरी को हुई और फिर 30 जनवरी को हुई; पहली बैठक में इस समिति ने महसूस किया कि उसके पास आपातकाल घोषित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे, लेकिन दूसरी बैठक में अंतर्राष्ट्रीय चिंता वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) की घोषणा करने का फ़ैसला ले लिया गया। इस तरह का फ़ैसला डब्ल्यूएचओ के आख़िरी फ़ैसले से पहले का उठाया गया एक क़दम होता है; 11 मार्च को यह बात साफ़ हो जाने के बाद कि वायरस पूरी दुनिया में फैल रहा है, लेकिन इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने सरकारों को कई चेतावनियां दी थी, इसके बाद डब्ल्यूएचओ ने इसे एक वैश्विक महामारी के रूप में घोषणा कर दी थी।

ट्रम्प और उनके डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी बिडेन के साथ-साथ दूसरे अमेरिकी राजनीतिज्ञों के एक समूह का भी मानना था कि डब्ल्यूएचओ ने अपनी इस घोषणा के साथ इस पर तेज़ी से अमल नहीं किया। उनका मानना था कि संयुक्त राज्य अमेरिका के सामने वायरस की वजह से जो भी समस्यायें उठ खड़ी हुईं,उन्हें लेकर अमेरिकी सरकार ज़िम्मेदार नहीं थी; बल्कि यह सब गड़बड़ियां चीन की सरकार सरकार और WHO की वजह से हुई।

हमारी छानबीन से पता चलता है कि इस तर्क का आधार बहुत ही तुच्छ है। डब्ल्यूएचओ का सूचना तंत्र मज़बूत है, लेकिन डब्ल्यूएचओ की इन औपचारिक घोषणाओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल और वैश्विक महामारी घोषित किये जाने की अपनी क्षमता है, जो सदस्य देशों के लिए गंभीर वित्तीय परिणाम से जुडी होती है और यही इसकी सीमा भी है; जिन देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को लाचार बना दिया है,वे संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देश ही है,और उनके ही नेता अब डब्ल्यूएचओ पर चीनी प्रभाव को लेकर निशाना साध रहे हैं।

संशोधन

1990 के दशक तक यह साफ़ हो गया था कि डब्ल्यूएचओ के पुराने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम मूल रूप से 1969 में जारी किये गये थे, जिनमें दो दशकों के दौरान कुछ मामूली संशोधन किये गये और और उसके बाद समय के साथ जिन ज़रूरी सुधारों की ज़रूरत थी,उन्हें नहीं अपनाया गया। पहली बात तो यह कि ये नियम इबोला और एवियन इंफ्लूएंजा जैसे बहुत संक्रामक, घातक और बार-बार संक्रमण करने वाले विषाणुओं के उभरने से पहले लाये गये थे। दूसरी बात कि हर साल क़रीब 4.3 बिलियन लोग हवाई यात्रा करते हैं,ये नियम इतने बड़े पैमाने पर हवाई सफ़र के पहले बनाये गये थे,जो इस समय तक पुराने पड़ चुके हैं।इस समय, इतने बड़े पैमाने पर हवाई यातायात को देखते हुए वायरस का एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना आसान भी हो गया है।

मई 2005 में 58 वीं विश्व स्वास्थ्य सभा ने 1969 के नियमों को संशोधित करते हुए इस बात की तरफ़ इशारा किया था कि ये नये नियम " बीमारी के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैलने से बचाव, उसके नियंत्रण, और सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर किये जाने वाले उपायों के उन तरीकों को अपनायेंगे, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम को सीमित तो करते हों,लेकिन जो अंतर्राष्ट्रीय यातायात और व्यापार में ग़ैर-ज़रूरी हस्तक्षेप से भी बचते हों।”

उत्तर अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर देकर कहा था कि PHEIC या वैश्विक महामारी की घोषणा यह स्पष्ट होने के बाद ही की जायेगी कि हवाई यात्रा और व्यापार पहले की तरह बाधित नहीं होते हों। यही सीमा अनिवार्य रूप से वैश्वीकरण का मूल आधार है, और इस नियम के यही आधार 2005 से डब्ल्यूएचओ को विवश किया हुआ है।

2009 का परीक्षण

डब्ल्यूएचओ के इन नये नियमों का परीक्षण तब हुआ था, जब अप्रैल 2009 के मध्य में एक नया इन्फ्लूएंजा मैक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका में सामने आया था। यह H1N1 इन्फ्लूएंजा वायरस जीन का एक संयोजन था, जिसका तार उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया दोनों से स्वाइन-वंश H1N1 के साथ जुड़ता था (इस प्रकार 2009 के प्रकोप को आमतौर पर "स्वाइन फ्लू" के रूप में जाना गया)। इसे पहली बार 15 अप्रैल को चिह्नित किया गया था। 24 अप्रैल को यू.एस. सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने सार्वजनिक रूप से सुलभ इन्फ्लुएंजा डेटाबेस पर एक जीन सिक्वेंस को अपलोड किया था। 25 अप्रैल को वायरस का पहली बार पता लगने के दस दिन बाद, डब्ल्यूएचओ ने 2009 के H1N1 के विस्फ़ोट को PHEIC घोषित कर दिया था। 11 जून को डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि यह एक वैश्विक महामारी रूप में फैलने के क्रम में है।

2020 में डब्ल्यूएचओ ने कोरोनोवायरस को PHEIC घोषित करने के लिए एक महीने का समय लिया और इसके बाद इसे एक वैश्विक महामारी घोषित करने के लिए दो महीने का और समय लिया। आपातकाल की घोषणा करने में थोड़ा समय लिया गया, लेकिन एक वैश्विक महामारी की घोषणा करने में भी उतना ही समय लगा।

जुलाई 2009 तक ख़तरनाक H1N1 वायरस का घातक प्रभाव डब्लूएचओ की आशंका के मुक़ाबले कम था। हालांकि, इसका पहली बार पता लगने के पूरे साल भर के भीतर 60.8 मिलियन लोग संक्रमित हुए थे और 12,469 लोगों की मौत हो गयी थी।

लगभग इसके तुरंत बाद, एक महामारी के रूप में इसके 11 जून के विवरण को लेकर डब्लूएचओ पर हमला किया गया था। जब डब्ल्यूएचओ किसी महामारी की घोषणा करता है, तो सरकारों से दवाओं और टीकों की बड़े पैमाने पर ख़रीद सहित कई तरह की चीजें को सुनिश्चित किये जाने की उम्मीद की जाती है, क्योंकि ये महंगे होते हैं।

दिसंबर में,यूरोपीय परिषद के सांसदों ने डब्ल्यूएचओ की इस घोषणा को लेकर एक जांच बैठायी। इस परिषद के चौदह सदस्यों ने डब्ल्यूएचओ पर अनिवार्य रूप से की गयी धोखाधड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि “फार्मास्युटिकल कंपनियों ने दुनिया भर के सरकारों को चेताने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के लिए ज़िम्मेदार वैज्ञानिकों और आधिकारिक एजेंसियों को प्रभावित किया है। इन कंपनियों ने उन्हें अप्रभावी वैक्सीन रणनीतियों के लिए महंगे स्वास्थ्य सेवा का संसाधन बना दिया है और इन कंपनियों ने अपर्याप्त रूप से परीक्षण किये गये टीकों के अज्ञात दुष्प्रभावों की अधिकता से लाखों स्वस्थ लोगों को अनावश्यक रूप से ख़तरे में डाल दिया है।” उन्होंने लिखा, "किसी ख़तरनाक महामारी को दवा बेचने वालों के प्रभाव में पारिभाषित नहीं किया जाना चाहिए।"

डब्ल्यूएचओ की इस आलोचना को काठ मार गयी। क्योंकि डब्ल्यूएचओ ने इसे एक महामारी घोषित तो कर दी थी, लेकिन इस घोषणा के तुरंत बाद वायरस स्थिर हो गया था।उस समय, डब्ल्यूएचओ ने विनम्रता के साथ इस तरह की आलोचना का जवाब दिया था। डब्ल्यूएचओ ने जवाब देते हुए कहा था,  “एक कम घातक वायरस के लिए सार्वजनिक धारणाओं को समायोजित करना समस्याग्रस्त रहा है।  जो कुछ आशंका जतायी गयी थी और जो कुछ हुआ है, उसके बीच की विसंगति को देखते हुए डब्लूएचओ और उसके वैज्ञानिक सलाहकारों की ओर से गुप्त उद्देश्यों की बात तो समझ में आती है, लेकिन इस बात का कोई औचित्य दिखता नहीं  है।”

ट्रम्प के हमले

डब्ल्यूएचओ के एक अधिकारी ने हम में से एक को बताया कि 2009 के हमले से यह एजेंसी हिल गयी थी। पिछले दस वर्षों में 2014 में इबोला और फिर 2016 में ज़ीका के प्रकोप को लेकर काम करते हुए इस एजेंसी ने अपने आत्मविश्वास को फिर से हासिल करने के लिए संघर्ष किया है। उन मामलों में से किसी में भी मामले में वैश्विक घोषणा करने की आवश्यकता नहीं थी।

इस वर्ष, डब्ल्यूएचओ ने शुरुआती मामलों के तीन महीने के भीतर ही इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया। लेकिन, इसमें कोई शक नहीं कि एक दशक पहले डब्ल्यूएचओ पर हुए उस हमले का असर हुआ है। डब्ल्यूएचओ के पूर्व कर्मचारी हमें बताते हैं कि मुख्य दानदाताओं की तरफ़ से इस तरह के हमले किये जाने के डर से डब्लूएचओ और इसके वैज्ञानिक सलाहकारों की स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ता है। ट्रम्प का मौजूदा हमला डब्ल्यूएचओ की अपनी गति और विश्वसनीयता,दोनों के साथ काम करने की क्षमता को और कमज़ोर करने वाला है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन अमेरिकी प्रशासन के कोप का सामना करने वाली पहली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी नहीं है। उल्लेखनीय है कि ट्रम्प प्रशासन ने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और कार्यक्रम नामक एक ऐजेंसी के लिए शून्य बजट के साथ कांग्रेस को अपना बजट भेजा था। संयुक्त राज्य अमेरिकी निधि को लेकर इसी तरह के मदों के तहत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, यूनिसेफ, यूनेस्को, मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय, संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष भी आता है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2018 में संयुक्त राष्ट्र की फ़िलिस्तीन एजेंसी (UNRWA) को वित्त पोषण करना बंद कर दिया था। जब यूएन संयुक्त राज्य अमेरिकी  हितों के अनुकूल होता है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका इसका इस्तेमाल करता है; जब संयुक्त राष्ट्र, अमेरिकी हितों के ख़िलाफ़ जाता है, तो वह अपनी निधि रोक देता है।

जब ट्रम्प ने कहा कि डब्ल्यूएचओ "चीन केंद्रित" है, तो उन्होंने इसे लेकर कोई सबूत पेश नहीं किया था,क्योंकि उनके पास कोई सबूत था ही नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका इस समय वैश्विक महामारी के प्रकोप का सामना कर रहा है। अगर अमेरिकी सरकार ने 30 जनवरी को सार्वजनिक आपातकाल घोषित करने या 11 मार्च को वैश्विक महामारी घोषित करने के बाद भी प्रभावी ढंग से योजना बनाना शुरू कर दिया होता, तो समस्यायें इतनी गंभीर नहीं होती। लेकिन अमेरिकी सरकार के पास ऐसी कोई योजना नहीं थी, यह अपने आप में परेशान करने वाली बात है।

इस बात को जॉर्ज पैकर ने अटलांटिक में रखते हुए कहा था कि जनवरी के बाद के महीनों में संयुक्त राज्य अमेरिका "घटिया बुनियादी ढांचे और एक निकम्मी सरकार” वाले उस देश की तरह था, जिसके नेता बड़े भ्रष्ट थे या सामूहिक पीड़ा को लेकर बेवकूफ़ियां कर रहे थे।” ट्रम्प अमेरिकी नागरिक को लेकर "जानबूझकर अंधे बने रहे, बलि का बकरा ढूंढ़ने में लगे रहे, शेखी बघारते रहे, और झूठ बोलते रहे।"  संक्षेप में कहा जा सकता है कि डब्ल्यूएचओ को बलि का बकरा बनाने के लिए अमेरिकी ने  चीन के किरदार को चुना है ; अपनी ज़िम्मेदारी को क़ुबूल करने से कहीं ज़्यादा आसान पहले से ही चल रहे एक ख़तरनाक व्यापार युद्ध का हिस्सा बनाना और एशिया में एक क्षेत्रीय संघर्ष के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराना है।

{विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वह इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्युट की एक परियोजना, ग्लोबट्रॉट्टर में एक राइटिंग फेलो और चीफ़ कॉरेस्पोंडेंट हैं। वह लेफ़्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं।}

यह इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्युट की एक परियोजना, ग्लोबेट्रॉटर द्वारा प्रस्तुत लेख है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

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