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सोनम वांगचुक ने की लद्दाख के लोगों के 'मन की बात' लेकिन क्या दिल्ली तक पहुंची बात?

लद्दाख को UT (Union Territory) बने तीन साल हो गए लेकिन आज भी छठी अनुसूची लागू करने की उनकी मांग अधूरी है। इसी मांग के साथ सोनम वांगचुक ने पिछले दिनों पांच दिनों की भूख हड़ताल की थी। सरकार आख़िर क्यों उनकी बात नहीं सुन रही इसपर न्यूज़क्लिक ने उनसे ख़ास बातचीत की।
Wangchuk

नीलम सी रंगत वाला वाला पानी, सितारों से भरा जादुई आसमान और ऐसे ख़ूबसूरत नज़ारे जिन्हें लगातार देखने से दिल कभी ना भरे, इस जगह का नाम है लद्दाख।

देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लद्दाख एक ऐसा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन गया है जो घूमने के शौकीन लोगों की पसंदीदा जगह में ज़रूर शामिल होता है। यहां का खारदूंग-ला पास (दर्रा) क़रीब 18 हज़ार की ऊंचाई पर पूरी दुनिया में सबसे ऊंचाई वाला मोटरेबल रोड माना जाता है। लेकिन लद्दाख की ये ख़ूबसूरती कब तक यूं ही सलामत रह पाएगी, ये बड़ा सवाल है। साल दर साल सैलानियों की बढ़ती संख्या बेशक पर्यावरण के लिहाज़ से ठीक नहीं है। इस बात की चिंता किसी को तो करनी होगी।

बता दें कि कई जानकारों द्वारा साउथ पोल और नॉर्थ पोल के बाद लद्दाख (हिमालय) को तीसरा पोल (ध्रुव) भी कहा जाता है। लेकिन इस तीसरे पोल पर ''All is Not Well'' लग रहा है। ये बात किसने कही है इसका ज़िक्र आगे।

ज़रा सोचिए अगर दिल्ली से क़रीब 970 किलोमीटर दूर लद्दाख को अगर अपनी बात दिल्ली तक पहुंचानी हो तो सबसे आसान तरीक़ा क्या होगा? लद्दाख़ के लोगों को अगर दिल्ली में बैठे हुक्मरानों से मुख़ातिब होना हो तो वो कौन सा तरीक़ा होगा जिसका असर जल्द से जल्द दिखे?

साल 2019 में लद्दाख को UT ( Union Territory केंद्र शासित प्रदेश) बनाया गया था। कहा जाता है कि ये एक ऐसी मांग थी जिसका लद्दाख को 70 साल से इंतज़ार था, इंतज़ार तो ख़त्म हो गया लेकिन अब भी लद्दाख के लोग एक बेहद ख़ास मांग के साथ केंद्र की तरफ देख रहे हैं, आख़िर ऐसा क्यों?

किसने कहा ''All Is Not Well'' ?

''All Is Not Well'' कहने वाले लद्दाख के सोनम वांगचुक हैं। सोनम वांगचुक को 2018 में रेमन मैग्सेसे अवार्ड से नवाज़ा गया था। ये वही सोनम वांगचुक हैं जिनसे प्रभावित होकर साल 2009 में आमिर ख़ान की फ़िल्म 'थ्री इडियट्स' आई थी। सोनम वांगचुक इंजीनियर हैं। वे लद्दाख में एक स्कूल चलाते हैं और पर्यावरण से जुड़े काम करते हैं। पिछले कई महीनों से लद्दाख में प्रदर्शन चल रहे थे लेकिन दूर ठंडे बर्फीले रेगिस्तान की ख़बर दिल्ली के चैनलों पर जगह नहीं बना पाई इसलिए सोनम वांगचुक आजकल पूरी दुनिया का ध्यान लद्दाख की तरफ़ खींचने की जुगत में लगे हैं।

लद्दाख के लोगों का क्या कहना है?

साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से ना सिर्फ़ धारा 370 हटी बल्कि लद्दाख को UT (Union Territory) भी बना दिया गया जिसकी मांग वहां के लोग सालों से कर रहे थे। UT बनने के बाद लद्दाख में जश्न मनाया गया, लोगों ने पीएम को शुक्रिया भी कहा। साल 2020 में 15 अगस्त के दिन लद्दाख के लेह में ऐसे पोस्टर बैनर दिखे जिनपर लिखा था-''यूनियन टेरिटरी लद्दाख अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।'' लेकिन कुछ समय और गुज़रा तो लोगों ने उन तमाम बातों की तरफ़ सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की जिसका वादा उन्हें UT बनाते वक़्त किया गया था। लोगों ने उन वादों को पूरा करने की मांग उठानी शुरू कर दी लेकिन जब किसी ने ध्यान नहीं दिया तो लोगों ने सड़क पर उतरना शुरू कर दिया, ये आरोप भी लगाया कि केंद्र का उनकी तरफ़ ध्यान नहीं है, इसके अलावा रोज़गार के वादों के बारे में सवाल खड़े किए जाने लगे। इसके साथ ही जिस तरह से लद्दाख को UT बनाया गया उसपर भी सवाल खड़े किए गए।

दरअसल UT भी दो तरह की होती है, एक With Legislature और दूसरी Without Legislature

इस बात को एक छोटे से उदाहरण से समझते हैं, जैसे दिल्ली भी UT है लेकिन ये With Legislature है, जबकि लद्दाख में Legislature नहीं है बल्कि यहां दो हिल काउंसिल हैं-एक लेह में और दूसरी कारगिल में, जो जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन इन दोनों ही हिल काउंसिल की शक्तियां बहुत ही सीमित हैं। ऐसे में लोगों का आरोप है कि उनकी बात नहीं सुनी जाती और LG अपनी मनमानी करते हैं।

जिस बात को लेकर लद्दाख के लोगों में सबसे ज़्यादा नाराज़गी है वो है छठी अनुसूची को लागू न करना, जिसका वादा किया गया था। इसके अलावा रोज़गार और ग्लेशियर समेत हिमालय की रक्षा करने की भी मांग की जा रही है।

सोनम वांगचुक ने की थी भूख हड़ताल

कुछ वक़्त इंतज़ार करने के बाद लोगों ने इन मांगों को उठाना शुरू कर दिया। लद्दाख को UT बने तीन साल हो गए लेकिन लोगों का आरोप है कि उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और उनकी बात नहीं सुनी जा रही। एक आम लद्दाखी की तरह ही सोनम वांगचुक भी बार-बार सरकार से अपील कर रहे थे लेकिन कोई सुनवाई न होने पर उन्होंंने भूख हड़ताल की जिसे उन्होंने ''क्लाइमेट फास्ट'' का नाम दिया था। ये क्लाइमेट फास्ट 26 जनवरी से 30 जनवरी तक 5 दिन तक चला था। वांगचुक इस हड़ताल के दौरान खुले आसमान के नीचे क़रीब माइनस 18 डिग्री सेल्सियस में बैठे थे। हालांकि उन्होंने अपना अनशन माइनस 40 डिग्री वाले खारदूंग-ला में करने का ऐलान किया था लेकिन सरकार ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था। सोनम वांगचुक का आरोप है कि उन्हें रोकने के लिए प्रशासन उनके साथ बहुत ही बुरी तरह से पेश आया और उन्हें हाउस अरेस्ट किया गया, साथ ही उन्हें एक बॉन्ड भरने पर भी मजबूर किया गया लेकिन उन्होंने उस बॉन्ड भरने से इनकार कर दिया।

वांगचुक के इस क्लाइमेट फास्ट को लोगों ने अपने-अपने अंदाज़ में समर्थन दिया। कोई भारी बर्फ़बारी में नंगे पैर बर्फ़ में खड़ा हुआ, तो किसी ने उनकी इस कोशिश पर एक गाना ही बना दिया :

वहीं उनके क्लाइमेट फास्ट के अंतिम दिन उन्हें समर्थन देने के लिए लद्दाख में तमाम लोग और अलग-अलग पार्टी से जुड़े नेता भी पहुंचे।

सोनम वांगचुक ने ये क्लाइमेट फास्ट देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान खींचने के लिए किया था लेकिन क्या उनकी ये कोशिश सफल हो पाई?

इन्हीं सब बातों से जुड़े सवालों को लेकर न्यूज़क्लिक ने सोनम वांगचुक से फोन पर बातचीत की।

सवाल सरआपने क्लाइमेट फास्ट किया किया थाक्या ये बात दिल्ली तक पहुंची?

जवाब : उम्मीद है पहुंची हो लेकिन उसके जवाब में हम तक उधर से कोई आवाज़ अब तक नहीं पहुंची, या हमारे नेताओं तक भी कोई आवाज़ नहीं पहुंची। लेकिन हमें उम्मीद है कि जल्द ही पहुंचेगी, उम्मीद ये भी है कि वे हमें सुन रहे होंगें।

सवाल आपकी तमाम मांगों में से सबसे अहम मांग क्या है?

जवाब : यही मांग है कि लद्दाख की वादियां, यहां के लोग और यहाँ की संस्कृति महफूज़ रहे। लद्दाख का जो पर्यावरण है, जो जनजाति संस्कृति है वो इन पहाड़ों के साथ पनपी है जोकि हज़ारों साल पुरानी है, कहीं वो तहस-नहस ना हो जाए।

वांगचुक कुछ देर ठहर गए और फिर अपनी बात पूरी करते हुए बोले :

''विकास के चक्कर में कहीं विनाश ना हो जाए''

आगे उन्होंने कहा, "हमारा पर्यावरण, हमारी जनजाति की संस्कृति बचे रहे ये हमारे भारतीय संविधान की छठी अनुसूची (अनुच्छेद 244) में संभव है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं की सरकार इसे जल्द लागू कर दे। बल्कि हमारी सरकार ने ही ख़ुद इसकी उम्मीद जगाई थी, क्योंकि जब UT बनी थी तो उस वक़्त उन्होंने इसका वादा किया था। गृह मंत्रालय, क़ानून मंत्रालय, जनजातीय मंत्रालय उन सबने एक तरह से वचन दिया था। चुनाव में ये उनका (BJP का) पहले नंबर का मुद्दा था, जो उनके घोषणा पत्र (संकल्प पत्र) में था। तो हम यही उम्मीद कर रहे हैं कि वे मान जाएंगें।"

सवाल साल 2019 में जब 370 हटी तो जश्न मनाया गया थाबहुत ख़ुशी का माहौल थाबीजेपी ने वादा भी किया था फिर अब क्या हुआ?

जवाब : ये एक बहुत बड़ा रहस्य है कि वे क्यों पलट गए। ये बात ख़ुद उनके संकल्प पत्र में थी, आश्वासन भी दिया गया था लेकिन पहले ख़ामोश हुए और फिर धीरे-धीरे मुंह फेर लिया, हमसे दूरी बना ली, हमें टालने लगे और अब तो 6th शेड्यूल पर बोलना ही एक जुर्म सा बन गया है। कुछ साफ़ पता नहीं चल रहा है लेकिन अटकलें ये लगाई जा रही हैं कि ऐसा उद्योग से जुड़ी शक्तियों की वजह से हुआ है, क्योंकि उन्हें लद्दाख को खुला देखना पसंद है ताक़ि वे कहीं भी खनन कर सकें, कहीं भी शोषण कर सकें।

सवाल क्लाइमेट फास्ट का कितना असर हुआ?

जवाब : जितनी हमें उम्मीद थी उससे तो ज़्यादा ही था पर शायद इतना भी नहीं था कि प्रधानमंत्री के कानों तक पहुंचे, क्योंकि हमें जवाब में कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी।

सवाल फिर अब आगे क्या?

जवाब : हमें अभी भी बहुत उम्मीदें हैं कि वे जल्द हमारे नेताओं को बुलाएंगे, बातचीत होगी, कोई संतोषजनक निष्कर्ष ज़रूर निकलेगा। नहीं निकला तो मैंने तभी कहा था कि कि ये पांच दिन की (26 जनवरी से 30 जनवरी) सांकेतिक हड़ताल है, अब अगली हड़ताल 10 दिन, फिर 15-20 दिन की होगी और फिर इसी तरह आगे जहां तक जाना पड़े, वहां तक जाएंगें।

सवाल आम लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए क्या करेंगें?

जवाब : मैंने पीछे लगातार वीडियो बनाए ताक़ि आम लोगों को समझ आए और वो हमारा समर्थन करें, बात नहीं बनी तो मैं आगे और ज़्यादा से ज़्यादा वीडियो बनाऊंगा ताकि हर किसी तक हमारी बात जाए।

सोनम वांगचुक लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। बर्फ़ीली वादियों से लेकर दिल्ली की सड़कों तक लोग बैनर पोस्टर लेकर लद्दाख में छठी अनुसूची लागू करने की मांग कर रहे हैं।

इसे भी पढ़ें : हिमनद झील के कारण आने वाली बाढ़ से भारत में 30 लाख लोगों को खतरा : अध्ययन

क्या है छठी अनुसूची ?

छठी अनुसूची हमारे संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत आती है जिसमें कुछ ख़ास प्रोविज़न (प्रावधान) होते हैं।

ये भारत के संविधान में किया गया एक ऐसा प्रोविज़न है, जो ट्राइबल इलाक़ों को Self Administration का अधिकार देता है।

नॉर्थ-ईस्ट के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों को छठी अनुसूची में शामिल किया गया है।

इसके तहत ADCs (Autonomous District Councils) बनते हैं जिसमें लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होते हैं और इस काउंसिल के लोग राज्यपाल (गवर्नर) को सलाह दे सकते हैं कि इलाक़े की भलाई के लिए क्या क़दम उठाए जा सकते हैं।

लद्दाख ने UT बनने के लिए सालों इंतज़ार किया, पीढ़ियों से देखा गया सपना सच हो गया लेकिन UT बनने के साथ ही लद्दाख के लोगों ने छठी अनुसूची लागू करने की भी मांग की थी जिसे पूरा करने का वादा ख़ुद सरकार की तरफ़ से भी किया गया था, लेकिन लद्दाख को UT बने तीन साल हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उसे अपनी इस मांग के भी पूरे होने के लिए एक लबा इंतज़ार करना पड़ेगा?

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