तिरछी नज़र: ‘विश्व गुरु’ को छोड़कर विदेश में बसने की इच्छा !

उस दिन गुप्ता जी पार्क में मिल गए। साथ में एक बहुत ही प्यारी सी सात आठ वर्ष की बच्ची थी। वैसे उनकी ओर मैं शायद न भी जाता पर उस प्यारी सी बच्ची के कारण चला ही गया। मैंने जिज्ञासा वश पूछा, "किसकी बच्ची है"?
"तुम्हारी धेवती है। अपनी मम्मी के साथ अमरीका से आई हुई है"। गुप्ता जी ने आगे कहा, "बड़ी ही भाग्यशाली लड़की है।"
"हां, हां, भाग्यशाली तो होगी ही, 2014 के बाद जो पैदा हुई है ना। उससे पहले पैदा हुए लोग तो अभागे ही हैं", मैंने जोड़ा। "सरकार जी स्वयं और देश के सारे मंत्री, अफसर, सभी अभागे ही हैं। सोचते हैं, न जाने पिछले जन्म में क्या पाप किए थे जो इस देश में जन्म लेना पड़ा"।
"अरे नहीं भी! इसलिए भाग्यशाली नहीं है। तुम तो हर एक बात को एक ही ओर ले जाते हो। भाग्यशाली इस लिए है कि इसके पैदा होते ही इसके पापा को अमरीका में नौकरी मिल गई। और फिर सभी अमरीका जा बसे। हम मिडिल क्लास की तो बस एक ही तमन्ना होती है, किसी तरह एक बच्चा अमरीका पहुंच जाए। इस बच्ची ने तो हमारी बस वही तमन्ना पूरी कर दी"।
"वैसे तो पिंकी के, अरे वही, हमारी बिटिया के, दो बच्चे हैं। एक बड़ा लड़का और एक यह लड़की। लेकिन हमने उसे समझा दिया है कि बेटे, एक बच्चा और होना चाहिए। और वह बच्चा ना, अमरीका में ही पैदा करना। वह तो वहां का जन्म से ही नागरिक बन जाएगा। और इन लोगों को भी आसानी हो जायेगी। सात साल होने को आए हैं पर अभी तक ग्रीन कार्ड भी नहीं मिला है"।
गुप्ता जी तो चले गए पर मुझे सोच में छोड़ गए। मैं सोच रहा था, अब तो सरकार जी की सरकार है। अब तो हम विश्व गुरु बनने ही वाले हैं। पिछले कई वर्षों से बस विश्व गुरु बनने की दहलीज पर ही खड़े हैं। पांच सात वर्षों से यही सुन रहे हैं, विश्व गुरु बनेगा भारत। बना है या नहीं बना है, पता नहीं। फिर विश्व गुरु को छोड़ कर, अपने प्यारे दुलारे देश को छोड़कर यह अमरीका, कनाडा, यूरोप या आस्ट्रेलिया में बसने की इतनी इच्छा क्यों? जब हम विश्व गुरु नहीं बन रहे थे, विश्व गुरु बनने की लाइन में भी नहीं थे तब भी इतने लोग बाहर बसने नहीं जा रहे थे जितने अब विश्व गुरु बनने की संभावना के बाद, सरकार जी का शासन आने के बाद जा रहे हैं।
बताते हैं, देश आर्थिक महाशक्ति बन गया है। सबसे अधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। जमीन भले ही यह न दिखाए पर हवा तो यह दिखा ही रही है। आंकड़े तो यही दर्शा रहे हैं। और उन आंकड़ों को यहीं छोड़ हम विदेश भागे जा रहे हैं। कोई देश का पैसा लेकर भाग रहा है तो कोई भ्रष्टाचार कर के भाग रहा है। चलो, यह तो देश की सरकार की ही नीति है। देश से बेईमानों को, भ्रष्टाचारियों को कम करने की नीति। नीति है कि बेईमानों को, भ्रष्टाचारियों को या तो देश से बाहर भेज दो या फिर सरकारी पार्टी में शामिल कर लो। वैसे मुझे समझ नहीं आ रहा है कि ये जो लोग भागे, माल्या, चौकसी, नीरव और ललित मोदी भागे, और भी लोग भागे, वे भागे क्यों? भाजपा में शामिल क्यों नहीं हो गए? किसी को भी इस बारे में कुछ पता हो तो मुझे समझाए।
लेकिन ये यंग जेनरेशन क्यों बाहर भागी जा रही है? क्या उसे यहां कोई काम नहीं मिला। मान लिया नौकरियां नहीं हैं, ना सरकारी हैं और प्राइवेट भी कम ही हैं। पर क्या उन्हें पकोड़े तलने का ठेला लगाने के लिए कोई ठिया नहीं मिला? या फिर नाले की गैस से चाय बनाने का तरीका समझ नहीं आया? देश से भागने की क्या वजह है, मुझे तो समझ नहीं आ रहा है। किसी को इस बारे में भी कुछ पता हो तो जरा बताए।
(इस व्यंग्य स्तंभ 'तिरछी नज़र' के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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