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दिल्ली सरकार छुपा रही सफाई कर्मियों को सीवर में उतारने का सच!, SKA ने उठाए गंभीर सवाल

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने दिल्ली में 77 दिहाड़ी मजदूरों का ब्योरा जुटाकर बताया है कि किस तरह राजधानी में कानून की धज्जियां उड़ रहीं हैं और सरकार सच छुपाने में लगी है।
sewer cleaning

 

दिल्ली: सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) ने देश की राजधानी दिल्ली में खुलेआम कानून का उल्लंघन करके भारत के नागरिकों, जिसमें सब दलित हैं, को सीवर व नालों की सफाई में उतारे जाने का कड़ा विरोध किया है। 

SKA का कहना है कि ऐसा करके दिल्ली सरकार ने न सिर्फ MS Act 2013  का उल्लंघन किया, बल्कि सफाई कर्मचारियों के जीवन को भी जोखिम में डाला है। 

SKA के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन की ओर से प्रेस को जारी बयान में कहा गया है कि अपनी आपराधिक गलती मानने और इसे ठीक करने के बजाय दिल्ली सरकार इन तस्वीरों को अपने विभागों की वेबसाइट से डिलीट करने का काम कर रही है। 

बयान के अनुसार सरकार के झूठ को उजागर करने और सफाई कर्मचारियों की दयनीय स्थिति को दुनिया के सामने साक्ष्यों के साथ पेश करने के लिए सफाई कर्मचारी आंदोलन की टीम ने दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जाकर सीवर व नालों का सफाई में उतरे लोगों का सर्वे किया, प्रमाण के तौर पर उनकी तस्वीरें उतारीं। 

SKA की ओर से जारी की गईं तस्वीरें

सफाई कर्मचारी आंदोलन का कहना है कि पिछले दो दिनों में यानी 4-5 जून को उनकी टीम ने अलग-अलग जगहों पर सीवर व नाले की सफाई कर रहे लोगों से बात की। इनमें से 77 लोगों की तस्वीरें व अन्य जानकारी ली। 

संगठन ने कहा है कि है कि कितने शर्म की बात है कि देश की संसद और दिल्ली विधानसभा से कुछ ही किलोमीटर दूर दिहाड़ी मजदूरी, नंगे बदन, बिना कोई सुरक्षा कवच के मानव मल व कचरा कबाड़ निकालने में लगाए गये है। 

SKA की टीम ने रोहिणी, ओल्ड राजेंद्र नगर, अंबेडकर चौक, अशोक विहार, प्रतापबाग, आजादपुर, मॉडल टाउन, राजा गार्डन व राजौरी में सड़क किनारे सीवर और खुले नाले में उतारे गये दिहाड़ी सफाई कर्मचारियों से बात की, जिससे  चौंकाने वाले और परेशान करने वाले तथ्य सामने आए हैं।

  • सीवर व नाले की सफाई में उतारे गये लोगों की उम्र 16 से 35 साल के बीच थी।
  • 77 लोगों में सिर्फ सात अल्पसंख्यक समाज के लोग थे, बाकी सभी वाल्मीकि जाति के थे।
  • दिल्ली के अलावा दिहाड़ी सफाई कर्मचारी उत्तर प्रदेश के मेरठ, बुलंदशहर, रामपुर, सीतापुर, हरदोई आजमगढ़, इलाहाबाद, गोरखपुर  और बिहार के बोधगया, भागलपुर व बेगुसराय से थे। इसके अलावा मध्य प्रदेश के रीवा, छत्तीसगढ़ के रायपुर व उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग से भी ये मजदूर आए थे। ये सारे माइग्रेटेड मजदूर हैं, जो दो जून की रोटी के लिए इस काम में उतारे गये।
  • इन्हें रोजाना ठेकेदार 350 रुपये से 550 रुपये मजदूरी देते हैं।
  • दिल्ली में सीवर और पानी या रेन वाटर की ड्रेन अलग-अलग नहीं हैं।

इन सबसे मैनुअल स्कैवेंजिग का काम कराया जा रहा है। इन सभी लोगों से मानव मल-मूत्र हाथों से उठाने का गैर-कानूनी काम दिल्ली सरकार करा रही है। जो एक अपराध है—कानूनी रूप से भी और मानवता के लिहाज से भी। दलितों के आत्मसम्मान व गरिमा पर आघात है।

देश भर में सफाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान मौत की खबरें आ रही है। SKA के अनुसार अभी इसी महीने में 4 जून तक छह लोगों की मौत की खबर आ चुकी है। अप्रैल व मई में 34 लोग जान गंवा चुके हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा खुलेआम गैर-कानूनी काम करवाना, जिसमें दलितों की जान का हर समय जोखिम है—बेहद शर्मनाक है।

SKA ने सरकार के सामने कई मांगें रखी हैं–

  • इस तरह से सीवर व नालों की सफाई को तुरंत प्रभाव से रोका जाए। किसी भी इंसान को इस अमानवीय-गैरकानूनी काम में न ढकेला जाए।
  • सरकार का दावा है कि सफाई मशीनों से कराई जा रही है, तब वे मशीनें कहां हैं, प्रशासन इसका जवाब दे।
  • सेनिटेशन का काम एक स्किलड वर्क है, इसे लेकर अलग से विभाग होना चाहिए, जहां सफाई कर्मचारियों को इमर्जेंसी वर्कर के तौर पर ट्रेनिंग व दर्जा मिलना चाहिए। यह स्थायी काम है जिसके बिना कोई भी शहर साफ नहीं रह सकता, उसी तरह का स्थायी गरिमामय रोजगार की व्यवस्था सरकार सफाई कर्मियों के लिए तुरंत करे।

 

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