कोविड-19: क्या लॉकडाउन कोरोना वायरस को रोकने में सफल रहा है?

2 मई को, सर्व-शक्तिशाली गृह मंत्रालय ने जनमत के नाम एक आदेश जारी किया, और देशव्यापी लॉकडाउन को दो सप्ताह के लिए यानी 17 मई तक बढ़ा दिया। इसे दूसरी बार बढ़ाया जा रहा है, यानी यह तीसरा लॉकडाउन है। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद पहली बार 24 मार्च को तीन सप्ताह के लंबे लॉकडाउन की घोषणा की थी और देशवासियों को मात्र चार घंटे की छूट दी थी। घोषणा करते वक़्त अपने नाटकीय भाषण में, मोदी ने कहा था कि संक्रामक वायरस के प्रसार की श्रृंखला या चेन को तोड़ने के लिए कड़े उपाय करना जरूरी हैं,और इस बीमारी को रोकने या इसे कम करने का सबसे बेहतरीन तरीका यही है।
उन्होंने आम लोगों से इसे पूरा करने का संकल्प लेने और संयम बरतने के साथ सबके स्वास्थ्य के बारे में सोचने का आह्वान किया था। फिर दोबारा 3 मई तक लॉकडाउन को बढ़ाने के लिए 14 अप्रैल को दिए गए अपने दूसरे भाषण में, उन्होंने बड़े उद्देश्य के लिए लोगों को अधिक बलिदान देने का आह्वान किया, साथ में यह भी कहा कि जनता उन्हे निश्चित रूप से उन सभी दुखों और परेशानियों के लिए माफ़ कर देगी जो उन्होंने लॉकडाउन के चलते उठाए हैं। फिर से, एक भावना व्यक्त की गई थी कि दुश्मन वायरस को हराने के लिए एक ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन, अब फिर से लॉकडाउन को बढ़ा दिया गया, हालाँकि कुछ छूट के साथ। इस बारे में भ्रम है कि यह छूट कैसे काम करेगी और कौन तय करेगा कि क्या ठीक है। लेकिन बावजूद इस सबके - भारत अब एक तरह से ग्रीन ज़ोन में है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या नॉवेल कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने में यह लॉकडाउन सफल रहा है? यदि आप भारत में कोविड-19 मामलों और मौतों के आंकड़ों को देखें, तो इससे कम से कम यह स्पष्ट हो जाता है कि बीमारी पर न तो अंकुश हीं लगाया जा सका है और न ही इसकी कोई रोकथाम हो पाई है। कई लोगों का तर्क है कि इसके प्रसार की गति अन्य देशों की तरह तेज़ नहीं है। लेकिन यह तर्क भी दोषपूर्ण है क्योंकि अभी भी इसी तरह के संक्रमण वाले अन्य देशों में गति समान हैं, बावजूद इसके वहाँ लॉकडाउन नहीं है।
24 मार्च के बाद से रोज़ आ रहे मामलों पर एक नज़र नीचे दिए चार्ट में डालें, यह वह दिन है जब पहली बार लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। दिए गए डेटा को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से लिया है और न्यूज़क्लिक टीम की डेटा एनालिटिक्स टीम ने इसका मिलान किया है।
24 मार्च को 102 नए मामलों का पता चला था। फिर 2 मई को रिपोर्ट किए गए नए मामलों की संख्या 2,411 तक पहुंच गई थी, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। (3 और 4 मई को इसमें और इज़ाफ़ा हुआ है।) इससे स्पष्ट होता है कि लॉकडाउन रोग के संक्रमण या प्रसार को रोकने में असमर्थ रहा है।
एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि अब चूंकि टेस्ट में वृद्धि हो गई है इसलिए अधिक मामले पाए जा रहे हैं। लेकिन यह तर्क भी भ्रामक है क्योंकि सभी जांच किए गए मामलों में सकारात्मक मामलों का अनुपात लगभग 4 प्रतिशत का है।
यह असफल क्यों रहा?
कुल कुप्रबंधन और अदूदर्शी योजना इसका एक प्रमुख कारण है कि इतनी महंगी और इतने बड़े पैमाने की तालाबंदी भी विफल रही है। सबसे पहले तो, लॉकडाउन की अग्रिम सूचना दी जानी चाहिए थी, जिससे प्रवासी श्रमिक, छात्र और अन्य अस्थायी यात्रियों को उनके अपने घर जाने की सुविधा दी जाती। चूंकि भारत में कोरोना का पहला मामला दर्ज हुए करीब 54 दिन बीत चुके थे, इसलिए सुरक्षा गियर, जांच किट और विविध चिकित्सा उपकरण की खरीद पहले से ही हो जानी चाहिए थी। व्यापक जांच से संक्रमित व्यक्तियों की पहचान की जाती और उनके संपर्कों का पता लगाकर उन्हे अलग कर दिया जाना चहाइए था।
रबी की फसलों की कटाई की आवश्यकता पर ज़ोर देना चाहिए था ताकि सभी के लिए भोजन सुनिश्चित किया जा सकता, लॉकडाउन के दौरान वेतन का भुगतान ज़रूरी था –इन सब मुद्दों को संबोधित किया जाना चाहिए था और राज्य सरकारों तथा आम लोगों पर बोझा डालने के बजाय केंद्रीय ख़ज़ाने से धन मुहैया कराया जाना चाहिए था। संभवतः एक पूर्ण और एक ही तरह के देशव्यापी लॉकडाउन के बजाय एक श्रेणीबद्ध लॉकडाउन किया जाना चाहिए था।
लेकिन मोदी सरकार यकीनन इस अवसर से चूक गई। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की स्क्रीनिंग के अलावा लगभग दो महीनों तक व्यावहारिक रूप से कुछ नहीं किया। इसके बाद जो अव्यवस्थित अराजकता के साथ लॉकडाउन किया उसे तो असफल होना ही था।
भारत एक महत्वपूर्ण परीक्षा के इंतज़ार में
आने वाले हफ्तों में, संकट के दो पहलू सामने आने वाले हैं। सबसे पहले तो, बीमारी का प्रसार कितना है यह स्पष्ट हो जाएगा। यदि यह बढ़ जाता है, जैसे कि कई देशों में हुआ है, तो वापस इससे भी कड़ा लॉकडाउन करना एकमात्र संभावित मार्ग होगा। कई वैज्ञानिक इस बात की भविष्यवाणी कर रहे हैं कि लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध केवल संकट को थोड़ा स्थगित कर देते हैं। इसलिए इसकी संभावना बहुत अधिक है और सरकार अब भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है।
इसका दूसरा पहलू लोगों की आर्थिक स्थिति है। अप्रैल की मज़दूरी का भुगतान मई के पहले सप्ताह के भीतर किया जाना था। औद्योगिक क्षेत्रों से मिल रही सभी रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि मालिकों ने मज़दूरों की मजदूरी का भुगतान नहीं किया है, कम से कम पूरा वेतन तो नहीं दिया है। इससे एक विस्फोटक स्थिति पैदा हो गई क्योंकि मज़दूरों को सरकार (खुद पीएम ने) ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन अवधि के दौरान का पूरा वेतन मिलेगा। मज़दूरों और उनके परिवार के पास पहले का बचा हुआ पैसा भी खत्म हो रहा है, वे बहुत अनिश्चित परिस्थितियों में जी रहे हैं, सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली मांग को पूरा करने में असमर्थ है, और वित्तीय सहायता या सामाजिक सुरक्षा लगभग न के बराबर है।
इसी तरह, किसानों के जीवन में भी संकट आएगा क्योंकि कटी हुई फसल को बेचना होगा। वर्तमान में, ऐसा लग रहा है कि खाद्यान्न की फसलों को एक कुशल खरीद मशीनरी के अभाव में रोक कर रखा जा रहा है। लेकिन किसान फसल को अधिक समय तक अपने पास नहीं रख सकते हैं। उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में बिना सोचे समझे बहुत कम कीमतों पर अपनी उपज को बेचना पड़ सकता है। यह उनके पहले से ही गिरे जीवन स्तर को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा।
और, फिर अनौपचारिक क्षेत्र या कर्मचारियों, या स्वरोजगार में लाखों अन्य मज़दूर हैं, जिन्हें एक महीने से बिना किसी कमाई के उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। लॉकडाउन प्रतिबंधों में कुछ ढील से राहत तो मिल सकती है लेकिन यह केवल आंशिक और अपर्याप्त होगी।
मोदी सरकार सोच रही है कि भव्य योजनाओं, पुलिस और पब्लिक रिलेशन अभ्यास से समर्थित इस बुरे वक़्त को निकालने में मदद मिलेगी, या लोग उनके द्वारा किए गए दग़ा को लोग भूल जाएंगे। उनकी इस सोच को आने वाले दिनों में एक करारा झटका लग सकता है।
[डेटा का मिलान पीयूष शर्मा और पुलकित शर्मा ने किया है]
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
COVID-19: Has the Lockdown Succeeded in Stopping the Novel Coronavirus?
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