गौतम नवलखा की ज़मानत याचिका ख़ारिज, अदालत ने कहा उनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत मौजूद

मुंबई: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने सोमवार को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनके खिलाफ मामले में पर्याप्त सबूत मौजूद हैं।
एनआईए की विशेष अदालत के न्यायाधीश राजेश जे. कटारिया ने नवलखा की जमानत याचिका को सोमवार को खारिज करते हुए कहा कि उनके खिलाफ ‘‘बेहद गंभीर’’ आरोप हैं।
अदालत के आदेश की प्रति मंगलवार को साझा की गई।
अदालत ने कहा, ‘‘ आरोप-पत्र पर गौर करने के बाद आवेदक के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने की बात सामने आई है। प्रथम दृष्टया कथित अपराध में आवेदक की संलिप्तता प्रतीत होती है।’’
अदालत आदेश में कहा, ‘‘ अपराध बेहद गंभीर है... अपराध की गंभीरता और प्रथम दृष्टया आवेदक के खिलाफ मौजूद सबूत के मद्देनजर वह जमानत के हकदार नहीं हैं।’’
नवलखा (69) को मामले में शामिल होने के आरोप में 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें शुरुआत में घर में नजरबंद रखा गया लेकिन बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और वह पड़ोसी नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल में बंद हैं।
यह मामला पुणे के शनिवारवाड़ा में 31 दिसंबर 2017 को हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए कथित उकसावे वाले भाषणों से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि इन भाषणों से शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के समीप अगले दिन हिंसा भड़क गई थी।
पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि माओवादियों ने इस सम्मेलन का समर्थन किया था। एनआईए ने बाद में इस मामले की जांच संभाली और इसमें कई सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया।
भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोपी गौतम नवलखा को तलोजा जेल से स्थानांतरित करने और घर में नजरबंद रखने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस रविंद्र भट ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। अब इस याचिका पर दूसरी बेंच सुनवाई करेगी। नवलखा ने याचिका खारिज करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है। नवलखा ने स्थानांतरण की मांग के लिए बुनियादी चिकित्सा आवश्यकताओं की कमी का हवाला दिया।
एनआईए के आरोपों का दावा है कि आरोपी व्यक्ति एक प्रतिबंधित संगठन, सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य एक क्रांति के माध्यम से जनता सरकार यानी लोगों की सरकार की स्थापना करना है, जो सशस्त्र संघर्ष के जरिए सत्ता को जब्त करने की प्रतिबद्धता द्वारा समर्थित है।
दिलचस्प बात यह है कि यह आरोप एक आरोपी के लैपटॉप पर एक पत्र की बरामदगी पर आधारित था। हालांकि, जैसा कि एक अमेरिकी डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल द्वारा रोना विल्सन के लैपटॉप की जांच से पता चला है, कि मैलवेयर का उपयोग करके 22 महीने की अवधि में इस पर सबूत प्लांट किए गए थे। इसके बाद अन्य आरोपियों ने भी अपने उपकरणों की फोरेंसिक जांच की मांग की थी, लेकिन अभी तक कोई पुख्ता जांच नहीं की गई है।
(भाषा इनपुट के साथ)
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