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ख़बरों के आगे-पीछे: दिल्ली में आप पर शिकंजा, राजस्थान में भाजपा मुश्किल में

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में दिल्ली के साथ राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु की सियासत का विश्लेषण कर रहे हैं।
AAP Leader

संजय सिंह के बाद अब किसकी बारी?

दिल्ली सरकार में मंत्री रहे मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और अब सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी के बाकी बड़े नेता डरे हैं। सबको गिरफ्तारी की आशंका सता रही है। दिल्ली के राजनीतिक हलकों में यह बात पूछी जा रही है कि अब किसकी बारी है? क्या केंद्र सरकार की एजेंसियां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई करेंगी?

संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने आम आदमी पार्टी के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और नारा लगाया कि केजरीवाल के लिए भी हथकड़ी पहुंचने वाली है। असल में कथित शराब घोटाले में पार्टी के कई नेताओं के नाम आ रहे हैं या लाए जा रहे हैं। वाईएसआर कांग्रेस के एक सांसद के रिश्तेदार के साथ-साथ एक कारोबारी दिनेश अरोड़ा सरकारी गवाह बन गए हैं। उसके बाद ही आम आदमी पार्टी के नेताओं की चिंता बढ़ी है।

संजय सिंह की गिरफ्तारी का एक कारण यह बताया जा रहा है कि उन्होंने दिनेश अरोड़ा को अरविंद केजरीवाल से मिलवाया था और पार्टी के लिए 82 लाख रुपए का चंदा वसूला था। जब मिलवाने वाले व्यक्ति को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया तो सोचा जा सकता है कि मिलने वाली यानी केजरीवाल के लिए कितनी मुश्किल हो सकती है। हालांकि यह सबको पता है कि उन्होंने किसी फाइल पर दस्तखत नहीं किए होंगे। लेकिन अगर शराब नीति में बदलाव करने के बदले पार्टी को पैसे मिलने का कोई सबूत मिलता है तो निश्चित रूप से पार्टी के सर्वोच्च नेता के नाते केजरीवाल मुश्किल में आएंगे।

ईडी के एक आरोपपत्र में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा का भी नाम है। हालांकि वे आरोपी नहीं बनाए गए हैं लेकिन एजेंसियों को किसी को आरोपी बनाने में कितना समय लगता है! इसीलिए आम आदमी पार्टी में चिंता बढ़ी है और पार्टी के नेता इस आपदा को अवसर में बदलने का रास्ता तलाश रहे हैं।

माइंड गेम खेल रहे हैं मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ देश के मतदाताओं के साथ भी माइंड गेम खेल रहे हैं। वे बार-बार दावा कर रहे हैं कि अगले लोकसभा चुनाव का नतीजा पहले से तय है। विपक्षी पार्टियां कुछ भी कर लें, वे भाजपा और मोदी को नहीं हरा पाएंगीं। प्रधानमंत्री ने यह बात सबसे पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से कही थी। उन्होंने यह नहीं कहा कि यह उनके दूसरे कार्यकाल का आखिरी मौका है, जब वे लाल किले से झंडा फहरा रहे हैं। उन्होंने पूरे 'आत्मविश्वास’ के साथ कहा था कि वे अगले साल भी लाल किले से झंडा फहराएंगे। यह एक मनोवैज्ञानिक दांव था, जिसका असर मतदाताओं और विपक्षी पार्टियों के नेताओं व कार्यकर्ताओं के दिल-दिमाग पर हुआ होगा। उसके बाद कई सरकारी और राजनीतिक कार्यक्रमों में भी मोदी ने अपने फिर से प्रधानमंत्री बनने का दावा दोहराया। हालांकि बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव नतीजे आने तक कोई भी पार्टी या नेता पूरे भरोसे से नहीं कह सकता है कि क्या नतीजा आने वाला है। लेकिन मोदी अगले साल भी लाल किले से झंडा फहराने और एक साल बाद योजनाओं की समीक्षा करने का दावा ऐसे कर रहे हैं, जैसे उन्हें नतीजे का पता हो। याद करें कि कैसे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में लाल किले की प्रतिकृति वाले मंचों से भाषण दिया था। तब विपक्षी पार्टियां ने उनका मजाक उड़ाया था लेकिन चार महीने बाद ही मोदी लाल किले से झंडा फहरा रहे थे।

कांशीराम के प्रति कांग्रेस का प्रेम

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का कांशीराम के प्रति प्रेम उमड़ रहा है। हालांकि अभी तक बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती कांग्रेस के साथ तालमेल के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने दो टूक अंदाज में कहा है कि उनकी पार्टी अगले चुनाव में किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होगी और अकेले चुनाव लड़ेगी। इसके बावजूद कांग्रेस नेताओं ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। पहले प्रदेश कांग्रेस के दलित अध्यक्ष बृजलाल खाबरी को हटा कर अगड़ी जाति के अजय राय को अध्यक्ष बनाया गया। यह कदम मायावती को खुश करने के लिए था, क्योंकि खाबरी उनकी पार्टी से कांग्रेस में आए हैं। अब कांग्रेस पार्टी दलित गौरव संवाद शुरू करने जा रही है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने बताया है कि नौ अक्टूबर को बसपा के संस्थापक कांशीराम के स्मृति दिवस के मौके पर कांग्रेस दलित गौरव संवाद शुरू करेगी। कांशीराम की जय-जयकार के लिए कांग्रेस ने यह अभियान शुरू किया है। ऐसा नहीं है कि इससे बसपा का वोट टूट कर कांग्रेस की ओर आ जाएगा। कांग्रेस का यह मकसद भी नहीं है। उसे सिर्फ मायावती को खुश करना है। असल में कांग्रेस इस कोशिश में है कि मायावती के साथ उसका तालमेल हो जाए और उसमें जयंत चौधरी की पार्टी भी शामिल हो जाए। इसका फायदा कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ आदि राज्यों में भी देख रही है, जहां अभी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

राजस्थान में भाजपा की मुश्किलें

भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा शुरू कर दी है। उसने उम्मीदवारों की तीन सूची जारी की हैं, जिसमें 79 नाम हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी 21 नामों की घोषणा हो गई है। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो छत्तीसगढ़ में वह विपक्षी पार्टी है। सवाल है कि राजस्थान में क्या पेच है, जो पार्टी वहां उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर रही है? अगर भाजपा ने रणनीति के तहत चुनाव की घोषणा से पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी है तो उसी रणनीति के तहत राजस्थान में घोषणा क्यों नहीं हो रही है? मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने हारी हुई और कमजोर सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं। ऐसी ही सीटों पर राजस्थान और तेलंगाना में भी उम्मीदवार की घोषणा हो सकती थी लेकिन नहीं हुई है। तेलंगाना में तो खैर भाजपा ने मैदान वहां की सत्तारूढ़ पार्टी भारत राष्ट्र समिति के लिए छोड़ रखा है और राजस्थान के बारे में जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी के अंदर बहुत ज्यादा खींचतान है। पार्टी अलग-अलग खेमों के नेता एक-एक सीट को लेकर इतने सतर्क हैं कि पिछले दिनों कई रिटायर सरकारी अधिकारी भाजपा में शामिल हुए तो तुरंत इसका विरोध शुरू हो गया कि किसी रिटायर अधिकारी को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। हालांकि पार्टी की ओर से सफाई दी जा रही है कि राजस्थान में भाजपा मजबूत स्थिति में है इसलिए पहले उम्मीदवार घोषित करके किसी तरह का विवाद खड़ा करना नहीं चाहती। अगर वाकई ऐसा तो जाहिर है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी स्थिति कमजोर मान रही है।

क्या 2011 में जाति जनगणना हुई थी?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार दावा कर रहे हैं कि यूपीए सरकार ने जाति गणना कराई थी और केंद्र सरकार को इसके आंकड़े जारी करने चाहिए। सवाल है कि क्या वाकई 2011 में मनमोहन सिंह की सरकार ने जाति गणना कराई थी? सवाल यह भी है कि जब 2011 की जनगणना में जातियां गिनी गई थीं तो कांग्रेस की सरकार ने उसके आंकड़े क्यों नहीं जारी किए थे? मई 2014 में सत्ता से बाहर होने से पहले कांग्रेस की सरकार ने 2011 की जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए थे फिर उसी सरकार ने जाति के आंकड़े क्यों नहीं जारी किए? क्या इसके लिए भी राहुल गांधी वैसे ही खेद व्यक्त करेंगे, जैसे उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं करने के लिए खेद जताया है? बहरहाल, असलियत यह है कि 2011 की जनगणना में जातियों की गिनती नहीं हुई थी। जनगणना के फॉर्म में कुल 29 सवाल पूछे गए थे और उन सवालों की सूची अब भी उपलब्ध है। उसमें जाति को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा गया था। इसका मतलब है कि जातियों की संख्या हर 10 साल पर होने वाली जनगणना का हिस्सा नहीं है। जब जनगणना में जाति नहीं गिनने के लिए यूपीए सरकार की आलोचना हुई तो एक आर्थिक व सामाजिक सर्वेक्षण उसके साथ ही अलग से कराया गया था। राहुल गांधी असल में उसी सर्वेक्षण के आंकड़ों को जारी करने की बात कर रहे हैं। वे आंकड़े जरूर सरकार के पास हैं। मीडिया में भी सूत्रों के हवाले से उनकी जानकारी बाहर आई है, जिसके मुताबिक हिंदू पिछड़ी जातियों की आबादी 45 फीसदी के करीब है।

अजित पवार के आगे भाजपा का समर्पण

इस समय देश में महाराष्ट्र ऐसा सूबा है जो राजनीति की प्रयोगशाला बना हुआ है। वहां मुख्यमंत्री भले शिव सेना के नेता एकनाथ शिंदे हैं लेकिन सरकार में सबसे ज्यादा चलती एनसीपी के नेता अजित पवार की है। वे बहुत बाद में गठबंधन में शामिल हुए और अब भी कोई यह नहीं कह सकता है कि वे टिके रहेंगे। इसके बावजूद मुख्यमंत्री शिंदे के विरोध के बावजूद अजित पवार की हर बात मानी जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भाजपा चाहती है। भाजपा को लग रहा है कि अजित पवार मराठा वोट किसी तरह से भाजपा के साथ जोड़ सकते हैं। बहरहाल, ताजा मामला जिलों के प्रभारी मंत्री नियुक्त करने का है। भाजपा ने मुख्यमंत्री शिंदे के विरोध के बावजूद अजित पवार को पुणे का प्रभारी मंत्री नियुक्त किया है। पुणे पवार परिवार का गढ़ है और वहां की कमान अजित पवार हर हाल में अपने पास रखना चाहते थे।

शिंदे के अलावा उनके रास्ते में एक बड़ी बाधा यह थी कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल वहां के प्रभारी मंत्री थे। वे अमित शाह के बेहद करीबी हैं। इसके बावजूद अजित पवार के लिए उनसे जगह खाली करा ली गई। इससे पहले उप मुख्यमंत्री बनने के बाद अजित पवार को मुख्यमंत्री शिंदे के विरोध के बावजूद वित्त मंत्रालय दिया गया। अब पांच फीसदी मुस्लिम आरक्षण का मामला है, जिसकी मांग अजित पवार कर रहे हैं। देखना है कि वे इस पर टिके रहते है या पुणे का प्रभारी मंत्री बनने के बाद पीछे हट जाते हैं!

कांग्रेस ओबीसी और महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाएगी

पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में उम्मीदवारों के चयन को लेकर दो बातें लगभग तय बताई जा रही हैं। पहली तो यह कि कांग्रेस पहले से ज्यादा महिला उम्मीदवार उतारेगी और दूसरे अन्य पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाएगी। राहुल गांधी इसीलिए इतना खुल कर महिला आरक्षण पर सवाल उठा रहे हैं और उसे तत्काल लागू करने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस महिलाओं को ज्यादा टिकट देने जा रही है और इस मसले पर भाजपा को घेरेगी। वे जातीय जनगणना और आरक्षण बढ़ाने की मांग भी इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि पार्टी अन्य पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों की संख्या भी पहले से बढ़ाने जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि महिला उम्मीदवारों में भी मोटे तौर पर पार्टी अन्य पिछड़ी जातियों को 30 फीसदी तक का आरक्षण दे सकती है। हालांकि यह घोषित करके नहीं दिया जाएगा लेकिन टिकट बंटवारे के बाद कांग्रेस इसका प्रचार करेगी। यह प्रयोग सभी राज्यों में होगा। मिसाल के तौर पर छत्तीसगढ़ की बात बताई जा रही है। छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यों की विधानसभा मे कांग्रेस के 71 विधायक हैं। इनमें से 13 महिला और 58 पुरुष है। बताया जा रहा है कि इन 13 महिला विधायकों के अलावा कांग्रेस कम से कम 13 और महिला उम्मीदवार उतारेगी। यानी 90 में से कम से कम 26 टिकट महिलाओं को दिए जाएंगे। अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो भाजपा के लिए मुश्किल होगी क्योंकि भाजपा ने मध्य प्रदेश में अभी जिन 79 उम्मीदवारों की घोषणा की है उनमें सिर्फ 10 और छत्तीसगढ़ के 21 उम्मीदवारों में सिर्फ पांच महिलाएं हैं।

तमिलनाडु में भाजपा की चिंता

तमिलनाडु में अपनी राजनीति को लेकर भाजपा चिंता में है। उसकी सहयोगी अन्ना डीएमके ने गठबंधन तोड़ लिया है और वह अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पार्टी के प्रमुख ई. पलानीस्वामी ने पार्टी के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि अन्ना डीएमके के दो करोड़ कार्यकर्ताओं की राय पर यह फैसला किया गया। दूसरी ओर भाजपा में एक खेमा ऐसा है, जो मान रहा है कि अकेले लड़ने से अपना वोट बैंक बचेगा और कुछ नया वोट जुड़ सकता है। लेकिन ज्यादातर नेता लोकसभा चुनाव में कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगले चुनाव में राज्य में खाता खुल सकता है। इसीलिए आगे की रणनीति पर विचार के लिए प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई दिल्ली आए। हालांकि उन्हें पार्टी के बड़े नेताओं से मिलने के लिए इंतजार करना पड़ा क्योंकि यह माना जा रहा है उनके बयानों की वजह से ही गठबंधन टूटा है। चर्चा है कि उन्हें हटा कर महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वनाथी श्रीनिवासन को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। भाजपा मे एक विचार यह भी है कि अन्ना डीएमके के दूसरे खेमे यानी ओ. पनीरसेलवम से बात कर उनके साथ गठबंधन किया जाए। राज्य की कुछ अन्य छोटी पार्टियों के साथ तालमेल करके भी चुनाव लड़ने के आइडिया पर भाजपा विचार कर रही है। लेकिन सबसे मुख्य विचार अब भी यही है कि पार्टी वापस ई. पलानीस्वामी के साथ बात करे और अन्ना डीएमके को तालमेल के लिए तैयार करे।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
 

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