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असम तेल कुएं में हुए धमाके की ग्राउंड रिपोर्ट: जैव विविधता और आजीविका के नुकसान से स्थानीय लोग में ग़ुस्सा

गांव के लोगों ने बताया कि उनके पशुओं की सेहत इसलिए बिगड़ गयी है, क्योंकि इन पशुओं के चारे का एकमात्र स्रोत वे घास और पत्तियां हैं, जो अब संघनित गैस की बूंदों से लदी हुई हैं।
असम तेल कुएं में हुए धमाके की ग्राउंड रिपोर्ट

असम के बागजान स्थित एक तेल कुएं में 9 जून को तेल क्षेत्र में हुए धमाके के बाद आग लग गयी थी। 27 मई से पहले ही इस कुएं में एक दरार आ गयी थी, जिसके चलते इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और जैव विविधता को व्यापक नुकसान पहुंचा है। आग पर 10 जून तक भी पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका था, इसलिए इसे 10 किमी से भी ज़्यादा दूर से देखा जा सकता था। हालांकि बागजान गांव में रहने वाले लोगों को वहां से तुरंत अलग ले जाया गया था, और ये लोग इस समय नोतून गांव जैसे आस-पास के गांवों में रह रहे हैं, ये लोग इस समय सेहत की कई परेशानियों का सामना कर रहे हैं। भूमि और जलीय जैव विविधता किस क़दर गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, इसका अंदाज़ा मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि में एक नदी डॉल्फ़िन के सतह पर मृत पाये जाने से लगता है। चाय बाग़ानों और फ़सल के खेतों को भी नुकसान पहुंचा है। मौतों की वास्तविक संख्या और संपत्ति को पहुंचे नुकसान की सीमा का अनुमान लगाया जाना अभी बाक़ी है।

ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) द्वारा 2003 में तिनसुकिया ज़िले के बागजान क्षेत्र में तेल और गैस की खोज के बाद से ओआईएल ने अब तक यहां 19 कुएं खोदे हैं। कुआं संख्या 5, जिसमें इस समय दरार आयी हुई है, उससे पहले 3,870 मीटर की गहराई से प्रति दिन लगभग 1 लाख मानक क्यूबिक मीटर गैस का उत्पादन किया जा रहा था। ओआईएल द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, " तिनसुकिया ज़िले में स्थित ऑयल इंडिया लिमिटेड के बागजान ऑयलफ़ील्ड के अंतर्गत आने वाला बागजान की कुआं संख्या 5 उस समय अचानक सक्रिय हो गया, जिस समय वहां ऑपरेशन पर काम चल रहा था...इस ऑपरेशन के दौरान ही कुएं में विस्फ़ोट हुआ। यह ऑपरेशन 3,729 मीटर की गहराई पर एक नयी रेत (तेल और गैस आसार वाले जलाशय) से गैस का उत्पादन करने के लिए चल रहा था।”

ओआईएल की निगरानी में गुजरात में काम करने वाली मेसर्स जॉन एनर्जी के स्वामित्व वाले भाड़े पर लिये गये विशेष उपकरण से संचालन का काम चल रहा था।

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ओआईएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी), एससी मिश्रा, एक क्षेत्रीय मीडिया चैनल, प्रतिदिन टाइम के साथ एक टीवी साक्षात्कार में कहा है कि बागजान में गैस कुओं पर काम चल रहा था, और उसी कुएं में एक और गहराई पर एक नयी रेत का परीक्षण किया जा रहा था। मौजूदा कुएं की भी मरम्मत की जा रही थी। ब्लोआउट प्रीवेंटर (ड्रिलिंग के दौरान किसी तेल के कुएं के शीर्ष पर लगाये गये भारी वॉल्व या वाल्व के समूह, जो किसी विस्फ़ोट की स्थिति में बंद हो जाती है) को भी हटा दिया गया था, क्योंकि कुएं के शीर्ष की मरम्मत चल रही थी। लेकिन दुर्भाग्य से अचानक कुएं में विस्फ़ोट हो गया।

9 जून को एक विस्फोट होने के बाद कुएं में आग लग गयी। ओआईएल को आधिकारिक तौर पर यह घोषित करना अभी बाक़ी है कि धमाका किस वजह से हुआ, लेकिन कुछ सूत्रों का दावा है कि लगातार बारिश के बाद दो दिनों से झुलसा देने वाले मौसम की वजह से गैस प्रज्वलित हो गयी होगी, और इस चलते धमाका हुआ हुआ होगा। एक अन्य सूत्र का दावा है कि नोतून गांव के स्थानीय लोगों ने पास स्थित एक अन्य सम्बद्ध ओआईएल के संचालन को जबरन बंद करा दिया था, जिसके चलते कुआं संख्या 5 पर दबाव बढ़ गया और जिसका नतीजा धमाके के तौर पर सामने आया।

बागजान और नोतून गांव के स्थानीय लोगों का दावा है कि कुआं की स्थापना 2003 में ओआईएल द्वारा बिना किसी जन सुनवाई और अधिकारियों से बिना किसी पर्यावरणीय मंज़ूरी के की गयी थी, जबकि बागजान को दुनिया की शीर्ष जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट के तौर पर जाना जाता है। इसके उत्तर में तीन नदियों का संगम है,जो एक साथ मिलकर ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती हैं, डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क 900 मीटर की हवाई दूरी पर स्थित है; इसके दक्षिण में मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि है, जो एक प्रसिद्ध इकोटूरिज्म स्पॉट है।

डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क वनस्पतियों और जीवों का एक समृद्ध भंडार है, जिनमें कई लुप्तप्राय प्रजातियां हैं। यह दुनिया का 19वां जैव विविधता वाला हॉटस्पॉट है। इस पार्क के सात हिस्सों में से एक आर्द्रभूमि है और बाक़ी में घास के मैदान और घने जंगल हैं।

मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि इस तरह के रिसाव का सबसे बड़ा ख़ामियाजा भुगतता रहा है। इस आर्द्रभूमि से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर हुए इस गैस रिसाव ने डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क और मगुरी मोटापुंग की संपूर्ण जैव विविधता को प्रभावित किया है, जिससे कई पक्षियों और जानवरों की प्रजातियों का जीवन खतरे में पड़ गया है। तेल रिसाव और संघनित गैस के नीचे जम जाने के कारण भी जल निकाय बेहद दूषित हो गये हैं। तेल रिसाव के कारण इस आर्द्रभूमि का दूषित जल कथित तौर पर नीला और पीला हो गया है। एक रिवर डॉल्फ़िन का मृत शरीर और कई मृत मछलियों के कंकाल कथित तौर पर उनकी जली हुए खाल के साथ बिल में पाये गये हैं।

बागजान और आसपास के गांवों के निवासी त्वचा, सांस से जुड़ी परेशानियों और मतली आने के साथ-साथ उस ध्वनि प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जो गैस रिसाव स्थल से पिछले 14 दिनों से पैदा हो रहा है। गांव के लोगों ने बताया कि उनके पशुओं की सेहत इसलिए बिगड़ गयी है,क्योंकि इन पशुओं के चारे का एकमात्र स्रोत वे घास और पत्तियां हैं, जो अब संघनित गैस की बूंदों से लदी हुई हैं।

9 जून को हुए विस्फोट के बाद लोगों के पास अपने गांवों से भागने के अलावा कोई और चारा नहीं रह गया था। भयभीत और हड़बड़ी के शिकार ग्रामीणों को उस समय जो कुछ भी बन पड़ा, उसे लेकर चलते बने। उन्हें अपने सामान वाले छोटे-छोटे थैलों और पिंजरे में बंद मुर्ग़ियों को हाथों में लेकर भागते हुए देखा गया था। स्थानीय लोगों ने बताया कि उस समय कोई अधिकारी वहां मौजूद नहीं था।

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मगुरी मोटापुंग आर्द्रभूमि अपने आसपास रहने वाले लोगों के लिए भोजन और आजीविका का मुख्य स्रोत रही है। मगुरी-मोटापुंग में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी पाये जाते हैं, जिसके लिए यह आर्द्रभूमि विश्व स्तर पर मशहूर है। लेकिन, धमाके के कारण उन्हें अपने घोंसलों और अंडों को छोड़कर इस इलाक़े से भागते हुए देखा गया है। इस सवाल का जवाब देना इस समय मुश्किल है कि वे अगले मौसम में इस इलाक़े में फिर लौटेंगे भी या नहीं। नतीजतन, इस बात की प्रबल संभावना है कि यह आर्द्रभूमि लंबे समय तक बंज़र बनी रहे, जिससे स्थानीय लोग अपनी आय के स्रोत से वंचित रह जायें।

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इस दरार और धमाके ने पर्यावरण और स्थानीय समुदायों को व्यापक तौर पर नुकसान पहुंचाया है। ओआईएल के आस-पास स्थित गांवों में आग लगने और कई धमाकों की सूचना है, जिन्होंने कई घरों को ध्वस्त कर दिया है और ग्रामीणों की संपत्ति को नष्ट कर दिया है। ओआईएल कुएं के पास के सभी घास के मैदान और धान के खेत जल गये हैं। इस रिसाव के चलते यहां की मिट्टी तैलीय और काली पड़ गयी है,जिस कारण आस-पास के चाय बाग़ानों को भी भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है।

इस बीच कुएं से गैस रिसाव के कारण पांच व्यक्तियों की कथित मौत की न्यायिक जांच के आदेश दे दिये गये हैं। इसी दरम्यान, ओआईएल ने इस धमाके के असर का आकलन करने के लिए एक पर्यावरण सलाहकार को नियुक्त कर दिया है।

ओआईएल ने सिंगापुर में काम करने वाले अलर्ट डिजास्टर कंट्रोल के तीन सदस्यीय वैश्विक विशेषज्ञ टीम को बुलाया गया है। यह टीम 9 जून को घटना स्थल पर पहुंची। ओआईएल ने कहा है, "सिंगापुर के लिए काम करने वाली इस आपदा नियंत्रण टीम के मुताबिक़ सभी ऑपरेशनों में लगभग चार सप्ताह लगेंगे।"

प्राकृतिक गैस उत्पादक कुएं के 1.5 किमी के दायरे में रहने वाले कम से कम 6,000 लोगों को निकाल लिया गया है और उन्हें राहत शिविरों में भेज दिया गया है। ओआईएल ने प्रत्येक प्रभावित परिवार के लिए 30,000 रुपये की वित्तीय राहत की घोषणा की है।

ओआईएल, ओएनजीसी, तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ ज़िलों के कई फ़ायर टेंडर मौके पर पहुंच गये थे, लेकिन आग पर काबू पाने में नाकाम रहे।

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हालांकि ओआईएल ने मुआवज़े के पैकेजों का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन कई स्थानीय लोग बागजान और आस-पास के इलाक़ों के सामाजिक और पारिस्थितिक तबाही को लेकर बरते गये ओआईएल के समग्र रवैये से असंतुष्ट हैं। वे सवाल करते हैं कि क्या इन मुआवज़ों से नष्ट पर्यावरण, आर्द्रभूमि और मिट्टी को हुए दीर्घकालिक नुकसान, और जलीय जानवरों की मौतों की भरपाई की जा सकती है। नोतून गांव के कई स्थानीय लोगों ने यह भी शिकायत की है कि उन्हें ओआईएल या सरकार की तरफ़ से किसी तरह का कोई मुआवज़ा नहीं मिला है। उनकी शिकायत है कि प्रशासन सिर्फ़ बागजान पर अपनी नज़रें इनायत कर रहा है, और नोतून गांव की तरह दूसरे गांवों की अनदेखी कर रहा है।

धमाके के छह दिन पहले 3 जून को स्थानीय लोग अपनी हताशा को ज़ाहिर करने के लिए सामूहिक रूप से सड़कों पर उतर आये। उन्होंने उस मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि पर बने पुल,कलपानी पुल पर अवरोध पैदा कर दिया, जिस पुल का इस्तेमाल ओआईएल बागजान कुओं तक पहुंचने के लिए किया करता था। प्रदर्शनकारियों की केवल इतनी सी मांग थी कि सरकारी अधिकारी और सम्बन्धित अधिकारी प्रदर्शन-स्थल पर आयें, उनसे मिलें और उनकी शिकायतों सुनें। हालांकि बागजान के निवासियों को तो तुरंत वहां से निकाल लिया गया था और 6 जून को उन्हें नज़दीक के पब्लिक स्कूल में शरण दे दी गयी थी, जबकि नोतून गांव के निवासी को उस धमाके के शोर और ज़हरीले गैस और इसकी गंध से बचने के लिए ख़ुद ही पास के एक पब्लिक स्कूल को एक आश्रय में बदलना पड़ा था। ओआईएल से निराश स्थानीय लोगों ने लगातार विरोध करते हुए नोतून गांव से सिर्फ़ एक किलोमीटर दूर स्थित एक अन्य ओआईएल के कुएं को बंद करने के लिए ओआईएल को मजबूर कर दिया है।

गांव वालों ने हालात को संभालने और बिना किसी राजनीतिक संगठन के हस्तक्षेप के सरकार और ओआईएल के साथ बैठकें करने के लिए अपनी समितियों का गठन कर लिया है। स्थानीय लोगों को इस बात का डर है कि राजनीतिक संगठन उनके मुद्दों को कहीं हड़प न ले और किसी समाधान के बजाय इस आपदा से फ़ायदा उठाने की कोशिश न करे।

प्रदर्शनकारियों में से एक ने बताया, "हम दूसरों के मुक़ाबले इन प्राकृतिक संसाधनों के साथ अच्छी तरह रहना जानते हैं, जो हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। हम नहीं चाहते कि कोई भी विदेशी कंपनी हमारे तेल को खोदे। हमें किसी ओआईएल की ज़रूरत नहीं है। "

नोतून गांव के रहने वाले देवोजीत स्थानीय भावना को व्यक्त करते हुए कहते है: "ये संसाधन तो उनके हैं, लेकिन समस्यायें हमारी हैं!"

कलियापानी पुल पर शांतिपूर्ण तरीक़े से धरना देने के बाद, 9 जून को डीसी कार्यालय में एक बैठक आयोजित की की गयी थी। ग्रामीण उस बैठक में भाग भी लेने गये थे, लेकिन विस्फोट की ख़बर आने के बाद उस बैठक को भंग कर दिया गया था।

इस रिपोर्ट के दाखिल होते समय, हालांकि ओआईएल कुआं स्थल के पास के गांवों में आग के प्रकोप पर क़ाबू तो पा लिया गया है, लेकिन ओआईएल कुएं में लगी आग को बुझाने में अभी तक कामायाबी हासिल नहीं की जा सकी है।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Assam Oil Well Blast Ground Report: Locals Angry Over Loss of Biodiversity and Livelihood

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